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________________ ११ द्वीप के अश्व हस्तिशीर्ष नामक विशाल नगर का राजा कनककेतु बडा ही उदार तथा प्रजा पालक था । इस कारण उसकी प्रजा सुखी और समृद्ध थी । उसके अच्छे शासन मे बहुत से गुणवन्त व्यक्ति अपनी विभिन्न कलाओ का विकास किया करते थे । नगर मे बहुत से सायात्विक नौका अणिक भी रहा करते थे । नौका या जहाज द्वारा वे सुदूर देशो मे व्यापार किया करते थे। उससे उन्हे खूब सम्पत्ति प्राप्त होती थी और वे धन सम्पन्न थे । एक वार उन्होने मिलकर व्यापार करने के लिए बाहर जाने का निश्चय किया । नौकाएँ तैयार करली गई, उनमे बहुत सा सामान भर लिया गया और लवणसमुद्र के तरल वक्ष पर थिरकती नौकाएँ चल पडी । अचानक एक स्थान पर समुद्र के भयानक तूफान उठा । अन्धकार ने घिरकर दिशाओ को ढक दिया । नौकाएँ लहरो के थपेडो मे निराधार होकर चक्कर काटने लगी । यात्री चिन्तित हो उठे । माक्षात मृत्यु का ताण्डव होता-ना प्रतीत होने लगा । नोकाएँ खेने वाले नियामक हैरान थे, किसी भी भांति नोकाएँ ५५
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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