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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं वश मे नही रह पा रही थी। उनकी बुद्धि नष्ट-सी हो चली थी । दिशाओ का जान खो गया था।
ऐसो विकट स्थिति मे यात्री नियामक के पास आकर पूछने लगे
“भाई नियामक । क्या कोई उपाय नही है ? तुम तो अत्यधिक चिन्तित प्रतीत होते हो?"
नियामक ने उत्तर दिया--
"वन्धुओ | क्या कहूँ । मेरी तो मति ही मारी गई। तूफान अत्यन्त भयंकर है। दिशाओ का कुछ ज्ञान ही नही हो पा रहा । नौका वश मे आ ही नहीं रही।'
नियामक के इस निराशा भरे उत्तर से सभी यात्री हताश हो गए । अन्न मे अन्य कोई मार्ग न देखकर एक यात्री ने कहा
"न मंाट के समय हमे पवित्र होकर इन्द्र, कार्तिकेय आदि देवो गपूजन करना चाहिए। यदि रक्षा सम्भव हे तो देवता ही ऐसा कर माते है।"
यह मुझाव मभी को मान्य हुआ । अन्य कोई विकल्प था भी नही । नानादि से शुद्ध होकर सभी ने देवो का पूजन आरम्भ कर दिया।
तृफान गरजता रहा । भीमकाय, पर्वताकर लहरे आ-आकर नोका ने टगती रही । अन्धकार घिरा रहा ।
एक ओर लहरो का गर्जन और दूसरी ओर यात्रियों के पूजन का मवेत म्वर आवाग मे गूंजने लगा । यह क्रम बहुत समय तक चला।
अन्न में मनुष्यों का संकल्प आधी ओर तूफान पर विजयी हुआ। देवनानुष्ट हा । तूफान थमने आर अन्धकार दूर होने लगा।
बने महत्वपूर्ण बात यह हुई कि ग्वबनहार की बुद्धि लोट आई। देवनानी की कृपा में वह पुन लब्धमति, लब्धति तथा लब्धमज हो गया। मग दिन जान जाग उठा । तब प्रसन्न होकर वह बोला