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________________ फिर क्या हुआ ? “हे भगवान् । यह कथा तो बडी रोचक है इसके बाद उस नन्द मणिकार ने क्या किया होगा?" भगवान ने गोतम स्वामी को फरमाया-"गोतम ! उसके आगे का वृत्तान्त ही तो इस कथा का मुख्य विन्दु है । उसे ध्यान से सुनो। वापी का कार्य पूर्ण हो जाने के बाद नन्द मणिकार का जीवन सुख से व्यतीत होने लगा। किन्तु, हे गोतम, समय कभी एक समान नहीं रहता। काल-चक्र चलता ही रहता है और उसमे उतार-चढाव आते ही रहते है। हुआ यह कि कुछ समय बाद नन्द मणिकार अस्वस्थ हो गया । उसके शरीर मे सोलह रोगातक अर्थात् ज्वर आदि रोग और शूल आदि आतक उत्पन्न हुए। वह पीडित हो गया। उसे श्वास, खाँसी, ज्वर, दाह, कुक्षिशूल आदि हो गए । सक्षेप में, उसका शरीर सभी प्रकारो के रोगो का घर बन गया । यहाँ तक कि वह कोढ से भी ग्रसित हो गया । वे रोग गहरे और असाध्य थे । कोई आशा नही थी कि वह नीरोग हो सकेगा । फिर भी उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाकर कहा "सारे नगर मे घोषणा करा दो कि जो भी वैद्य नन्द मणिकार के एक भी रोग को दूर कर देगा उसे विपुल धनराशि प्रदान की जायगी।" घोषणा हो गई। मणिकार नगर मे जनता का प्रिय था। उसके सत्कर्मों के कारण सव उसका आदर करते थे। अत' उसकी पीडा का समाचार जानकर अनेक वैद्य और चिकित्सक स्वेच्छा से ही उसके रोग को शान्त करने का उपाय करने के लिए दौडे आए। अनेक प्रकार के उपचार अनेक वैद्यो द्वारा किए गए। कुछ भी उठा न रखा गया। किन्तु किसी भी उपचार से रोगी की पीडा शान्त नही हुई। "हे भगवान । क्या इतने उपचार द्वारा भी उस नन्द मणिकार का तनिक भी रोग शान्त नहीं हो सका ?'-गौतम स्वामी ने पूछा। “कर्मों की शक्ति के आगे मनुष्य का प्रयत्न निष्फल रहता है, गौतम । नन्द मणिकार को अपने पूर्वकृत कर्मा का फल भोगना ही था। अत सभी प्रकार के उपचारो के उपरान्त भो उसका एक भी रोग शान्त नहीं हुआ। वैद्य निराश हो गए और अपने-अपने स्थान को लौट गए।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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