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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
इसके बाद उन सोलह रोगातको से अभिभूत हुआ नन्द मणिकार उस 'नन्दा' नामक पुष्करिणी मे अतीव मूच्छित हुआ । इस कारण तिर्यञ्च योनि सम्बन्धी आयु का बन्ध करके, आर्तध्यान के वशीभूत होकर, मृत्यु के समय काल करके वह उसी वापी मे एक मेढकी की कुख मे एक मेढक के रूप मे उत्पन्न हुआ ।
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धीरे-धीरे जन्म लेकर, वात्यावस्था से मुक्त होकर, यौवन को प्राप्त करके वह उस वापी मे रमण करने लगा । मैने तुम्हे पहिले ही बताया है कि उस वापी मे प्रतिदिन अनेक लोग आकर स्नानादि किया करते थे । वे लोग जब वहाँ आते तो आपस मे वार्तालाप किया करते थे
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" अहा । कितनी सुन्दर वापी है । इसका निर्माण कराने वाला नन्द मणिकार धन्य था । उसका जीवन सफल हुआ । लोगों के सुख के लिए उसने कितना त्याग किया ।"
इसी प्रकार की अनेक बाते प्रतिदिन वहाँ आने वाले लोग किया करते थे। बार-बार इन बातो को मुख से सुनकर उस मेढक को विचार हुआ - जान पडता है मैंने इस प्रकार के वचन पहिले भी कभी सुने हे ।
इस प्रकार निरन्तर विचार करने से, शुभ परिणाम के कारण उस मेढक को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । ओर वह ज्ञान उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पूर्व भव अच्छी तरह याद हो आया । तब उसने विचार किया - हाय । मैं इसी राजगृही नगरी में नन्द मणिकार था । मैने भगवान महावीर से पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत ग्रहण किये थे । यह मेरा परम सौभाग्य था । किन्तु कुछ समय तक साधु दर्शन न पाने से मैं भटक गया था, भूल गया था और मिथ्यात्वी हो गया था । किमी अशुभ कर्म के परिणामस्वरूप ही ऐसा हुआ था । इसके बाद मैने यह 'नन्दा' नाम की पुष्करिणी बनवाई और अन्त समय मे इसके प्रति अत्यन्त आसक्ति के कारण मैं इसी में मेढक के रूप मे उत्पन्न हुआ । हाय । यह बहुत बुरा हुआ । में अधन्य हूँ, अपुण्य है, क्योकि मै निग्रन्थ प्रवचन से भ्रष्ट हुआ
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यह विचार मन मे उदित होने के बाद उस मेढक ने निश्चय कियामुझे फिर से पहिले अगीकार किए हुए पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षात्रत ग्रहण करने चाहिए। इनका दृढता से पालन करना चाहिए । तब निश्चय