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________________ ४२ महावीर युग की प्रतिनिधि कयाएं नन्द मणिकार ने इसके बाद दक्षिण दिशा में एक विशाल भोजनशाला वनवाई। जीविका प्रदान करके उसमे अनेक पाक-शास्त्रियो को रख दिया । जो भी दरिद्र, भिखारी, अतिथि अथवा ब्राह्मण उधर आते उन्हे सुस्वादु भोजन भी प्राप्त होने लगा। हे गोतम, उस नन्द मणिकार ने अपने मन में यह निश्चय कर लिया था कि जब उसने एक शुभ कार्य आरम्भ कर ही दिया है तो अब उसे पूर्णता तक ले जाएगा । किसी भी प्रकार की कमी न रहने देगा। अत उसने अब पश्चिम दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चिकित्साशाला बनवाई। उसमे उसने अनेक वैद्य रखे । औपधियाँ मँगवाई। इस प्रकार जो भी रोगी व्यक्ति वहाँ आता उसकी नि शुल्क चिकित्सा भी हो जाती ओर वह नन्द मणिकार को आशीर्वाद देता हुआ स्वस्थ होकर अपने घर लौट जाता। और अन्त मे सेठ की आज्ञा से वापी के उत्तर दिशा के वन-खण्ड मे एक बडी अलकार सभा भी बनवाई गई। उस सभा मे अनेक दीन-दरिद्रो को समुचित अलकार दिए जाते । इस प्रकार उस नन्द मणिकार ने जो कार्य हाथ मे लिया उसे बडे अच्छे रूप मे पूर्ण भी कर दिया। इस प्रकार प्रतिदिन अनेक लोग उस नन्दा पुष्करिणी में स्नान करते, वहाँ विश्राम करते, विहार करते, भोजनादि प्राप्त करते, औषधि प्राप्त करते, वस्त्रादि प्राप्त करने और आनन्द मनाते । इस मत्कार्य की चारो ओर प्रशंसा होने लगी। लोग नन्द मणिकार का माधुवाद करते और उसे 'धन्य धन्य' कहते, आशीर्वाद देते । इस प्रकार राजगृह नगर की गली-गली मे उम नन्द मणिकार की जय-जयकार होने लगी। नन्द मणिकार भी अपने श्रम ओर सम्पत्ति का यह सदुपयोग कर बहुत सन्तुष्ट हुआ।" इननो क्या मुनने के बाद गातम म्बामो की जिनामा बढ गई थी। वे जानना चाहते थे कि इसके बाद क्या हुआ होगा ? अत उन्होने नगवान में कहा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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