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________________ यह सुख-दुख का द्वार पर्व का दिन भी आ पहुँचा । मालिक के घर मे मेहमान आए। उत्सव की तैयारियाँ होने लगी। मेमने को सजाकर ऑगन मे खडा किया गया । उसके पास नगी लपलपाती तलवार लिए एक आदमी खडा था। वह तलवार देखकर भयभीत मेमना “मे - मे" करके चिल्लाने लगा । किन्तु उसको चिल्लाहट को किसी ने नहीं सुना। उसकी यही नियति थी कि एक दिन उसे वलि होकर उन मॉसभक्षी मनुष्यो के उदरो मे समा जाना था । बण्डा भी तलवार देखकर भयभीत होकर अपनी माँ से चिपट गया था। किन्तु गाय ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा "बेटा ! तू मत घवरा । यह तलवार अपने लिए नही है। यह तो उस मेमने के ही लिए है, जोकि अब तक सुख-भोगो मे लिप्त था । अनर्गल सुख की लालसा और भोग ही प्राणी को मृत्यु को समीप खीच लाते हे । अव तो तेरी समझ मे आ ही गया होगा कि क्यो उस मेमने की इतनी आवभगत होती थी ?" मनुष्य को अति सुख और अति भोग से सदैव बचते रहना चाहिए । अन्ततोगत्वा वे दु ख के ही कारण बनते है । इसके विपरीत जो सरल प्रकृति जन संयम से रहते है, सन्तोष धारण करते है तथा जैसी भी परिस्थिति हो, उसी मे अपनी गुजर करते चलते है, उन्हे कभी निराश नही होना पड़ता और वे दुख के नरक से भी बच जाते है। - उत्तराध्ययन
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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