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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ दूध देती हो । इम परोपकार को करते हुए तुम्हारा बच्चा भी भूखा रह जाता है । तुम्हारी अन्य सन्तान खेती वाडी मे इसके काम आती है | अथक परिश्रम करती है | शायद ही कोई अन्य ऐसा पालतू पशु हो, जो मानव जाति की इतनी सेवा करता हो । किन्तु फिर भी अपना यह मालिक अपने मारे उपकार को भुलाकर उस भेड के बच्चे की ओर पक्षपात करता है । हमे न अच्छा चारा मिलता है, न स्वच्छ स्थान । दूसरी ओर जरा देख तो मही, उस भेड के बच्चे की वह कैसी देखरेख करता है ? उसे कितना अच्छा खाना देता है ? उसके रहने के स्थान को कैसा स्वच्छ रखता है ? ૨૬ "माँ 1 तू ही बता, यह मेमना उस मालिक के किस काम आने वाला है ? यह भेड का पिल्ला इसकी क्या सेवा करने वाला है । यह तो पूर्णत निरुद्यमी, निरुपयोगी और व्यर्थ है । फिर भी आवभगत होगी तो उसी आलमी की । उसे खाने के लिए ओदन दिया जायगा, हरी-हरी कोमल घाम उसे खिलाई जायगी । उसे इतना प्यार किया जायगा जैसे वह मालिक का अपना ही बच्चा हो । भला यह अन्याय नही है क्या ?" गाय समझदार थी, सरल ओर सन्तोपी जीव थी । अपने बेटे की ये रोप भरी बातें सुनकर उसने उसे समझाया - "वेटा । दूसरे का मुख देखकर ईर्ष्या करना अच्छा नही । यह तो ससार है । इस संसार मे न जाने कितने अकर्मण्य जीव मजे मे मुख का भोग कर रहे है, ओर न जाने कितने कर्मशील जीव दुख ही पाते रहते है । बेटा, हमे तो मन्तोप रखना चाहिए । हम जैसे भी हो, जिस स्थिति मे भी हो, चुपचाप अपना काम करते चलना चाहिए। दूसरो के मुख को देखकर जलना नही चाहिए आर दूसरों के दुख को देखकर प्रसन्न भा नहीं होना चाहिए। अपने हाल मे ही मग्न रहना चाहिए।" "और वेटा, ध्यान से सुन, तू नही जानता कि इस मेमने की इतनी मेवाटहल क्यों हो रही है। तु अभी दुनियाँ में आया है, सब कुछ धीरे-धीरे समझ जायगा । इन मेमने को जो खिला-पिला कर मोटा - ताजा किया जा रहा है. इसका रहस्य तुझे थोडे दिन मे आने वाले एक पर्व के अवसर पर समझ में आ जायगा ।"
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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