________________
IS
यह सुख-दुःख का द्वार
किसी आदमी के पास एक थी गाय और एक थी भेड । दोनो की सारसम्हाल वह भली प्रकार से करता था । समय पर उन्हे चारा आदि डालता और समय पर ही पानी पिलाने का भी ध्यान रखता । समय आने पर गाय ने एक बछडे को जन्म दिया और भेड ने एक मेमने को ।
धीरे-धीरे वछडा और मेमना बड़े होने लगे । लेकिन उनके मालिक को जितनी चिन्ता मेमने की रहती थी, उतनी बछडे की नही । मेमने के प्रति उसका कुछ विशेष ही लगाव और पक्षपात था । फलत अच्छे पौष्टिक आहार मिलने तथा विशेष सार-सम्हाल होने के कारण मेमना बहुत जल्दी हो हृष्ट-पुष्ट होने लगा । वछडा बेचारा अपनी बडी-बडी आँखो से यह मारा दृश्य देखता, मन मार कर रह जाता और मेमने से ईर्ष्या करता किन्तु जानवर था, विवश था, अपने मालिक का वह क्या बिगाड सकता था ?
वछडे को अपने प्रति मालिक के इस उपेक्षा भाव से इतना दुख और मेमने के प्रति ईर्ष्या हुई कि धीरे-धीरे उसने अपनी माँ का दूध पीना भी छोड दिया । इससे गाय को वडा आश्चर्य हुआ । उसने अपने बेटे से पूछा “क्यो बेटा, तुझे क्या हो गया ? तूने दूध पीना क्यो छोड दिया ?
तव बछडे के हृदय मे भरे हुए सारे भाव सहज ही फूट पडे - " माँ ' अपना यह मालिक वडा कृतघ्न निकला । तुम इसे अमृत के समान मधुर
३५