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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं ये शब्द कहते हुए वह देव कामदेव के चरणो मे गिर पडा और क्षमा प्राप्त कर वह अदृश्य हो गया। सभी उपसर्ग सह लेने के पश्चात् कामदेव ने कायोत्सर्ग को पूर्ण किया। तत्पश्चात् नगरी में भगवान महावीर के पुनरागमन की बात जब उसने सुनी तो निश्चय किया कि भगवान के दर्शन-वन्दन करने के उपरान्त ही भोजन वरगा। अपने संकल्प को क्रियान्वित करने के लिए वह पूर्ण भद्र चैत्य मे पहुँचा । भगवान को वन्दन किया, पर्युपासना की और देशना सुनी। परिपह के मध्य भगवान ने श्रमणोपासक कामदेव के गत रात्रि के उपसर्ग के वृत्तान्त पर सविस्तार प्रकाश डालते हुए उनकी दृढ निष्ठा की ओर संकेत किया और कहा “निर्ग्रन्थो । गृहवास मे रहने वाले श्रमणोपानक देव, मनुष्य या तिर्यञ्च सम्बन्धी सभी उपसगों को सम्यक् प्रकार से सहते हैं और ध्यानादिक आध्यात्मिक क्रियाओ से विचलित नहीं होते। द्वादशागी के धारक श्रमण निर्ग्रन्थ को तो ऐसे उपसर्ग सहन करने मे सर्वथा दृढ, समर्थ और पूर्ण तत्पर रहना चाहिए।" कामदेव तीस वर्ष तक ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना कर शीलबत आदि से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ श्रावक पर्याय मे स्थित रहा। अन्त मे अनशन, आलोचना-प्रत्यालोचना कर समाधि को प्राप्त हुआ और अपना आयुष्य पूर्ण कर सौधर्मकल्प के सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण के अरुणाभ विमान मे देवरूप मे उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी चार पल्योपम की स्थिति है। वहाँ से आयु, भव और स्थिति का क्षय कर वह महाविदेह क्षेत्र मे उत्पन्न होगा और सिद्धि को प्राप्त करेगा। -उपासक दशा-२
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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