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महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ
लुटा-पिटा सार्थवाह अपनी प्यारी बेटी से भी हाथ धो बैठा और दुखी होकर नगर रक्षको के पास जाकर बोला
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"देवानुप्रियो । चिलात- नामक चोर मेरी सम्पत्ति तथा कन्या का हरण कर ले गया है । सम्पत्ति का मुझे कोई खेद नही । वह तो हाथ का मैल है । अपने पुरुषार्थ से उसे मै पुन अर्जित कर लूंगा । किन्तु मुझे अपनी प्रिय पुत्री के अपहरण का वडा दुख है । आप नगर के रक्षक है। कृपया चिलात से मेरी कन्या वापस लाकर मुझे दीजिए ।”
रक्षकों को अपने कर्त्तव्य का भान हुआ । वे प्रस्तुत हुए । सिंह गुफा की ओर शस्त्र - सज्जित सैनिक चल पडे ।
चिलात ने यह सैन्य अपनी शरण स्थली की ओर आती हुई देखी और तत्क्षण युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गया ।
विकट युद्ध हुआ । चिलात शक्तिशाली था, किन्तु रक्षक सैन्य संख्या मे अधिक थे । चोरो के पाँव उखड़ने लगे ओर परास्त होकर व जंगल मे
इधर-उधर भाग गए।
चिलात ने जब अपनी सेना को तितर-बितर हुआ देखा तो वह सुसुमा को लेकर एक भीषण जंगल मे घुस गया ।
धन्य सार्थवाह ने चिलात को उस जंगल मे अपनी कन्या के साथ घुसता हुआ देख लिया था । अपने पाँचो पुत्त्रो के साथ वह उसका पीछा करने
लगा ।
चिलात सुसुमा के साथ गहन से गहनतम वन मे भागता गया, किन्तु वाप-बेटो ने भी उसका पीछा नही छोडा । प्राणो की वाजी लगाकर वे उसके पीछे पडे ही रहे ।
धीरे-धीरे चिलात थकने लगा । उसे सुसुमा का भार भी ढोना पड रहा था । जव उसने देखा कि वह सुसुमा का भार ढोता हुआ अब अधिक दूर नही जा सकता, तब उसने उस कोमल कन्या का सिर बेरहमी से काट लिया और उसे लेकर वह और भी अधिक सघन अटवी मे घुस गया ।
चिलात उस सघन अटवी मे घुस तो गया, किन्तु वह इतनी सघन और अन्धकारपूर्ण थी कि वहाँ जाकर वह मार्ग भूल गया । बहुत समय तक वह इधर-उधर भटकता रहा, भागते-भागते उसे तीव्र प्यास लग आई