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________________ आसक्ति और अनासक्ति ढाले कस ली गई। तलवारे निकाल ली गई। तीर और तरकश संभाल लिए गए । भाले ओर वठियाँ उछलने लगी । रण-वाद्य बजा दिये गए । इस प्रकार चोरो की वह सेना जब उस सिह पल्ली से वाहर निकली तो ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे समुद्र उफन रहा हो और उसका घोर गर्जन दिशाओ मे फैल रहा हो। पानी से निकलकर वे राजगृह नगर के बाहर एक सघन वन मे छिपकर सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्य अस्त हुआ। अन्धकार घिरने लगा। रात्रि धीरे-धीरे उतरने लगी । अर्धरात्रि भी हो गई। तब चिलात अपनी चोर-सेना सहित नगर के पूर्व दिशा के द्वार पर जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने जल से आचमन किया, स्वच्छ हुआ। इसके बाद उसने ताला खोलने की विद्या का आह्वान किया। मत्र से अभिषिक्त जल उसने द्वार पर छिडका ....... । खट खट् शब्द के साथ देखते-देखते ही ताले टूट गए और द्वार खुल गया। नगर मे प्रविष्ट होकर वह धन्य सार्थवाह के महल की ओर वढा । चलते-चलते वह ऊँचे स्वर से घोषणा करता गया "मैं, चिलात नाम का चोर सेनापति पाँच सौ चोरो के साथ सिह गुफा नामक चोर-पल्ली से धन्य सार्थवाह का घर लूटने आया हूँ। जो भी व्यक्ति नवीन माता का दूध पीना चाहता हो वह निकल कर मेरे सामने आए।" किसे नई माता का दूध पीना था ? किसे अपनी मृत्यु बुलानी थी ? कोई भी उसका सामना करने नहीं आया, चोर-सैन्य विना किसी अवरोध के धन्य मार्थवाह के घर पर पहुँच गई। घर का द्वार तोड दिया गया। धन्य सार्थवाह उस भयंकर आक्रमण से भयभीत होकर अपने पुत्रो सहित किसी सुरक्षित स्थान पर छिप गया। चिलात को सार्थवाह अथवा उसके पुत्रो से कोई प्रयोजन न था। उसने जी भर कर उसकी सम्पत्ति को लूटा और मुसुमा कन्या को लेकर अपनी गुफा मे लौट गया।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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