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आसक्ति और अनासक्ति
थी, किन्तु कही जल नही था । जल केवल सिह गुफा मे ही था और उस गुफा का मार्ग वह भूल गया था। अत भटकते-भटकते वह प्यास के मारे रास्ते मे ही मर गया।
धन्य सार्थवाह चिलात के पीछे पड़ा था। उसे खोजते खोजते आखिर वह उस स्थान पर पहुँचा जहाँ उसकी पुत्री का सिर कटा हुआ शव पड़ा था । उसे देखकर वह दु.ख के मारे मूच्छित होकर उसी प्रकार गिर पडा जैसे कुल्हाडे से काट दिए जाने पर चम्पक वृक्ष भूमि पर गिर पडे ।
___ उसके पुत्रो ने अनेक प्रकार उसका उपचार किया और किसी तरह उसे होश आया। होश मे आने पर वह तीव्र विलाप करने लगा। वह और उसके पुत्र प्यास के मारे पहले से ही अधमरे हो चुके थे, अब विलाप करने से उनकी प्यास और भी अधिक बढ गई। किसी प्रकार साहस करके वे जल की खोज मे इधर-उधर भटकने लगे, किन्तु जल कही भी नही था ।
भटकते-भटकते वे उसी स्थान पर वापिस लौट आए। तव धन्य मार्थवाह ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपने पास बुलाकर कहा
"हे पुत्र ! आज हमारे दुर्भाग्य की चरम सीमा आ गई। किन्तु पश्चात्ताप तथा विलाप से तो अव कुछ होगा नही । भूख और प्यास से हम लोग इतने पीडित हो चुके है कि यदि कोई उपाय न किया गया तो हम सभी यही पर मर जाएँगे । अत तुम ऐसा करो कि मुझे जीवन से रहित कर दो और मेरे शरीर के रुधिर और मास से अपनी भूख-प्यास मिटाकर, शक्ति का संचय कर घर पर पहुँचो और शेष कुटुम्ब का रक्षण करो एव धर्म और पुण्य के भागी वनो।
_ पिता की बात सुनकर पुत्र को वहुत दुख हुआ । वात ही ऐसी थी। वह वोला
"पूज्य पिताजी । यह आप कैसी बात कह रहे है ? आप हमारे पिता है, पूज्य है, हमारे लिए देवता स्वरूप है । हम ऐसा पाप कैसे कर सकते है ? आप ऐमा कीजिए कि मुझे ही जीवन से रहित कर दीजिए तथा अपनी भूखप्यास शान्त कर घर लौटिए ।'
बडे भाई की यह बात सुनकर दूसरे भाई ने तुरन्त कहा