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________________ १८ प्रकाश ही प्रकाश शुभ अध्यवसाय हो, और निरन्तर उनका विकास होता रहे तो कुछ भी असाध्य नही रहता। आर्या मृगावती का प्रसग है। कौशाम्बी मे भगवान महावीर का समवसरण लगा था। सभी भगवान के दर्शन हेतु गए थे । यहाँ तक कि सूर्य और चन्द्र भी । मृगावती भी गई थी। किन्तु सूर्य-चन्द्र भी चूंकि स्वस्थान पर उस समय नही थे, अतः समय का ठीक अनुमान नहीं हो सका। मृगावती को लौटने मे विलम्ब हो गया। उसे विलम्ब से आया देख आर्या चन्दना ने कहा- "तुम उत्तम कुल मे उत्पन्न हो। फिर भी लौटने मे तुमने इतना विलम्ब क्यो किया ? यह उचित नही। भूल-सुधार के लिए यह सामान्य संकेत था। किन्तु यही सकेत मृगावती के लिए वरदान बन गया। अपनी भूल के लिए उसने क्षमा माँगी तथा यह सकल्प व्यक्त किया-“भविष्य मे ऐसी भूल कदापि नहीं होगी।" उस समय कोई नही जानता था कि भविष्य, वल्कि निकट भविष्य के ही गर्न में क्या है ? स्वय मृगावती भी नही । आर्या चन्दना तो सो गई, किन्तु मृगावती को नीद कहाँ ? वह एकार होकर अपनी भूल का पश्चात्ताप कर रही थी। सोचती यो-“मुझसे
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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