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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
" पालक | अपने पाप का परिणाम भोग । अब तेरी रक्षा नही है ।" आकाश से अंगारे बरस पडे । सारी नगरी धू-धू कर जल उठी । एक भी जीवित प्राणी शेप न रहा । दृष्टि की सीमा तक केवल जली हुई भूमि और भस्म की ढेरी .
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कहते हे वर्षों तक वह अग्नि वुझी नही और पुराणकारो की दृष्टि वही भूमि आज का दण्डकारण्य है जो अपने भीतर उस अविवेकी राजा दण्डक ओर पापी पालक की पाप-कथा समेटे शून्य मे सिसकता रहता है ।
उत्तराध्ययन
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