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________________ वे बलिदानी "यह शिष्य तुझे विशेष प्रिय है ? अच्छा हुआ | तेरी आँखो के सामने पहले इसे ही अच्छी तरह कोल्हू मे पेलता हूँ, फिर तेरी वारी आयेगी ।" वाल - मुनि प्रशान्त था । उसने कहा "गुरुदेव | आप विचलित न हो । मुझे तनिक भी क्षोभ नही । आप अपनी आराधना कीजिए । मेरा अन्तिम वन्दन ।” ८३ सव समाप्त हो गया । आचार्य स्कन्दक ने सीमा का अतिक्रमण करने वाले पालक से कहा"पापी । सावधान । तेरे पाप का घट भर गया है । अव परिणाम भुगतने के लिए प्रस्तुत रहना । मैं तुझे तेरे परिवार को, तेरे राजा को, तेरी सारी इस नगरी को भस्म कर दूँगा निष्ठुर पालक ने आचार्य को भी उठाकर कोल्हू मे पेल दिया । हरा-भरा वह उद्यान भयानक नर हत्या के परिणामस्वरूप भीपण श्मशान बन गया । एक गीध किसी मुनि के रक्तरजित रजोहरण को मास का पिण्ड समझकर उसे अपनी चोच मे दवाकर उड गया । भारी होने के कारण कुछ देर बाद उसकी चोच से छूटकर वह महारानी पुरन्दरयशा के महल मे गिर पडा । रानी ने वह रक्तरजित रजोहरण देखा और आशका से उसका हृदय धडक उठा । उसने तुरन्त मुनियो का कुशलक्षेम पुछ्वाया ओर जव उसे वस्तु स्थिति की सूचना मिली तव वह चीखती हुई मूच्छित होकर भूमि पर गिर पडी । .. ין किसी दयावान देवता ने यह देखा और रानी को उठाकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी जहाँ विहार करते थे वहाँ उसे रख दिया। रानी जव होश मे आई तव भगवान की अमृतवाणी सुनकर विरक्त होकर दीक्षित हो गई । आचार्य स्कन्दक अपने पूर्व सकल्पानुसार अग्निकुमार देव हुए । जपने ज्ञान से उन्होंने अपनी मृत्यु वा कारण देखा, पाँच सौ मुनियो की देह के टुकडे टुकडे देखे और वे विकराल रूप धर कर आए। कुम्नकारकटक का आकाश अग्निमय हो गया । देव ने कहा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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