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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
मुनि निरपराध है । इनका रक्त बहाकर तुम्हारा हित नही होगा । हिसा से किसी का हित होता ही नही । दुष्कर्मों का परिणाम भयकर होता है,
पालक ।"
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किन्तु पालक तो पागल हो रहा था । उसकी सुबुद्धि लोटी नही । क्रूर अट्टहास करता हुआ वह एक-एक मुनि को उठाकर कोल्हू में फेंकने लगा । पवित्र मुनियों के रक्त से धरती लाल हो चली। खून की नदी वह गई । हड्डियों का ढेर लगता चला गया । चील - कोवे मॉस के लोथडो पर मँडराने लगे ।
भावी अटल है । मुनि स्कन्दक धैर्य, साहस और शान्ति के सुमेरु वने रहे और अपने शिष्यों का मनोबल बढाते हुए, शान्तिपूर्वक मृत्यु के मुख में जाने से पूर्व उन्हे समाधिनिष्ठ बनाते रहे ।
कृतकर्मों की आलोचना, प्रत्यालोचना ओर मलेखना कर, जीवन के उच्चतम आदर्श पर आरूढ होकर वे धर्मवीर पवित्र मुनि एक-एक कर मृत्यु की बलिवेदी पर चढ़ते चले गए ।
चार मी निन्यानवे मुनि जीवित कोल्हू मे पेल दिए गए आर स्कन्दक अपने हृदय को अचल रखे शान्त भाव से देखते रहे । शेष था एक छोटा-सा साधु | बडा ही सुकुमार, विनीत, आज्ञाकारी, आचारनिष्ठ । उसे नी उम भयंकर मृत्यु की ओर जाते देख आचार्य स्कन्दक का हृदय भी हिन गया । सागर कभी अपनी मर्यादा नही तोडता । किन्तु वैर्य के महासागर स्कन्दक की मर्यादा अब टूट गई। उन्होंने कहा
" पालक | अरे पापी । यदि अपमान ही किया था तो मैंने किया था। इस कोमल बालक माधु ने तेरा क्या बिगाडा था ? इसे तो छोड़ दे । जो कुछ चाहता हो, वह मेरे साथ कर ले | अब भी मान जा, अनि तुरी होती है । "
तमाम हत्याकांड के बावजूद मुनि स्कन्दक को शान्त र अविनलिन देखकर पालक को सन्तुष्टि नहीं हो रही थी। अब जब उसने देखा कि जन्तिनान-मुनि की ओर स्कन्द का विशेष नाव है तो ह
डाबडा प्रहुरता हुन