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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं “बच्चे कैसा पढ़ रहे है ? सब ठीक तो चल रहा हे न आचार्यवर ।” "ओर तो सब ठीक है। किन्तु यह युधिष्ठिर वडा मूर्ख प्रतीत होता है । आज कितन दिन हो गये, दो वाक्य याद करने को दिये थे-सदा सत्य बोलो, क्रोध न करो-सो भी इसे याद नहीं हुए।"-द्रोण ने बताया । __ भीष्म ने युधिष्ठिर से पूछा तो उसने उत्तर दिया "वावा । अब मुझ आधा पाठ याद होगया है। गुरुजी ने कहा थाक्रोध न करो--वह मुझे अच्छी तरह याद हो गया। गुरुजी ने मुझे खुब पीटा, किन्तु मुझे तनिक भी क्रोध नही आया । किन्तु पाठ का प्रथम अशसदा सत्य बोलो-अभी मुझे ठीक याद नही हुआ । वावा । बताइये, मैं झूठ कैसे बोलू ?" युधिष्ठिर का यह उत्तर सुनकर भीष्म और द्रोण दोनो ने युधिष्ठिर को अपनी बाहो मे भर लिया । प्रतापी आचार्य द्रोण की आँखो मे ऑसू थे । वे बोले "अरे पुत्र । बेटा युधिष्ठिर । क्षमा कर मुझे । सच्चा सबक तो तूने हो मीखा है । मच्चा पाठ तो तूने ही याद किया हे रे ! ओर तुझे आधा नहीं, पूरा पाठ याद हो गया है । अहा । म धन्य है कि मुझे तेरा जैसा शिष्य मिला ह आर मेरी शिक्षा भी आज धन्य हुई कि किसी एक बालक ने तो उसे ग्रहण किया। शप ये सब निठल्ले ह, झूठे है।" गुरु द्रोण की आँखों में उस समय जो ऑसू ये वे हर्प के, सतोप के आर जीवन की चरम सार्थकता के अधु-विन्दु थे। शेप वालको ने जब यह सुना कि-"ये सब तो निठले है, झूठे ह. " तो उन सब के चेहरो पर स्याही-सी पुत गयी थी और वे मन ही मन ईप्या और क्रोध ने उफन रहे थे, जो इन बात का प्रमाण था कि उनमे से किमी को पाठ पाद नहीं हुआ था। युधिष्ठिर आचार्य के चरणों मे झुका पडा या आर आचार्य द्रोण का दाहिना हाथ उसके मन्नक पर आशीर्वाद की वर्षा कर रहा था ।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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