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१६ अनिष्टकारी आसक्ति
किसी भी कर्म मे आसक्ति अच्छी नही है। बुरे कर्म मे आसक्ति तो बुरी है ही, किन्तु सत्कर्म मे भी यदि आसक्ति हो तो वह अहितकारी होती है।
एक वार भगवान महावीर जब राजगृह नगरी के बाहर गुणशील उद्यान मे विराजे थे तव दर्दर नामक एक देव उनके दर्शन हेतु आया । वह देव वडा तेजस्वी था। उसे देखकर गणधर गौतम ने भगवान से प्रश्न किया
“भगवन् । इस दर्दुर देव को यह अद्भुत तेज कैसे प्राप्त हुआ ?" भगवान ने बताया
"गौतम । एक बार एक चतुर, समृदृ मणिकार मेरा उपदेश सुनकर सन्तुष्ट हुआ और श्रावक व्रत लेकर धर्म-साधना करने लगा। कुछ समय वाद वह असयत और आसक्त मनुप्यो के मसर्ग मे रहकर धर्म मे शिथिल हो गया। पहिले जैमी दृढता अव उमके आचरण मे और भावना मे नही रही थी।
“ज्येष्ठ का महीना था। उस समय उसने तेला किया। तप करने वह पौपधशाला मे बैठ गया। किन्तु भयानक तृपा एव तीव्र क्षुधा से पीडित होकर वह समभाव न रख सका। वह सोचने लगा-तृपा बडी भयकर पीडा है । लोगो को इस तुपा से बचाने के लिए मैं राजगृह से बाहर एक