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________________ । ___ गुरु और शिष्य ७५ करना तो होगा ही। और यह भी याद करना होगा-क्रोध न करो। बालक इस पाठ को याद करने में मग्न हो गया। दूसरे दिन पढाई के समय द्रोणाचार्य ने पूछा"बच्चो ! तुम सबने कल का पाठ याद कर लिया ?" एक-एक कर सभी वालको ने उत्तर दिया "हाँ गुरुजी । याद कर लिया । बहुत सरल पाठ था कल तो-सदा सत्य बोलो, क्रोध न करो।" गुरु द्रोण प्रसन्न हुए। किन्तु उसी समय उनकी दृष्टि मौन । निश्चल बैठे युधिष्ठिर पर पडी । उन्होने पूछा "अरे युधिष्ठिर । तू कैसे चुप रह गया ? क्या तुझे पाठ याद नही हुआ रे?" युधिष्ठिर ने धीरे से अपना सिर ऊपर उठाया और बोला "हाँ गुरुवर्य ! मुझे कल का पाठ अभी याद नही हुआ । याद करने का प्रयत्न मैं अवश्य कर रहा हूँ।' गुरु द्रोण को क्रोध चढ आया । इतना जरा-सा, दो वाक्य का पाठ, और वह भी याद नही हुआ ? उन्होने आव देखा न ताव, उठाई एक छडी-और लगे युधिष्ठिर की मरम्मत करने, पूरी निर्दयता से । युधिष्ठिर का उत्तर सुनकर सारे बालक हँस पड़े थे । हंसने की बात ही थी, इतना छोटा-सा पाठ भी उसे याद नही हुआ था ? __ किन्तु जव द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर की पिटाई शुरू की तो ये सब बालक सन्न रह गये थे । दुर्योधन जैसे बालक तो सोच रहे थे कि यदि गुरुजी हमे इस प्रकार पीटते तो हम उल्टा सवक इन्हे ही सिखा देते, आखिर हम राजकुमार है, इस प्रकार क्या मार खाने के लिये है ? किन्तु वानक युधिष्ठिर शान्त भाव से मार खाता रहा । उसने 'उफ' तक न की । अन्त मे गुरुजी ही थककर बडबडाते चले गये-निकम्मा कही का । आलसी परले सिरे का, मूर्ख । दो वाक्य भो याद नही कर सका ? क्या पढाऊँ इसे-अपना सिर ? दो-चार दिन बीते । भीष्म पितामह वच्चो की देखभाल करने आए | गुरु द्रोण से उन्होने पूछा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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