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गुरु और शिष्य
जो कुछ लिखा हुआ हो या गुरु द्वारा बताया गया हो, उसे केवल रट लेना ओर दुहरा देना ही वास्तविक पढाई नही है । सच्ची पढाई अथवा सच्ची शिक्षा तभी होती हे जवकि वह आचरण में उतर जाय । रामायण और महाभारत का नाम जानता है । कहानियाँ भी वह सुनता रहता है। लेकिन ऐसे उनके जीवन और चरित्र से सच्ची शिक्षा ग्रहण
भारत का बच्चा राम ओर युधिष्ठिर की कितने बालक होंगे जो
करते ह
युधिष्ठिर की ही एक बात लीजिए
कौरव और पाण्डव जब बालक ही थे तब उनकी शिक्षा के लिए गुरु द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया । उनके आश्रम में वे लोग रहते ओर पढ़ते ये । शस्त्र चलाना भी सीखते थे और शास्त्र भी पढ़ते थे ।
उसी समय की एक छोटी सी, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण घटना हैएक दिन गुरु द्रोणाचार्य ने पाठ याद करने के लिए दिया - "सदा सत्य बोलो । क्रोध न करो ।"
पढाई का समय समाप्त हुआ । बालक खेलने-कूदने मे लग गए । किन्तु केवल एक बालक ऐसा था जो एकान्त मे बैठा कुछ सोच रहा था। वह बालकथा - युधिष्ठिर, पाण्डवों में सबसे बड़ा भाई ।
ओर वह सोच क्या रहा था? वह सोच रहा था-मदा मत्य बोलो - कितना कठिन पाठ है? यह पाठ कैसे याद होगा ? कभी झूठ बोलना ही नहीं है, चाहे कुछ भी हो जाय, हो, चाहे प्राण ही चले जायें, किन्तु मत्य हो बोलना है, झूठ नहीं बोलना है-गुरु जी ने कहा है- इस पाठ को अच्छी तरह याद कर लो ।
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