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________________ राजा--"अच्छा तो कहाँ पर गये थे ?" चोर--- "चोरी करने गया था।" राजा--"किसके यहाँ पर चोरी की ?" चोर-- "राज-खजाने मे गया था। यदि गरीब के यहाँ जाता तो उमे कितना कष्ट होता।" राजा-"राज-खजाने से क्या लाये हो ?" चोर--"सिर्फ जवाहरात के बहुमूल्य दो डिब्बे चुराकर लाया हूँ।" राजा ने और मन्त्री अभयकुमार ने सोचा यह मजाक कर रहा है, उन्होने हँसते-हँसते राजमहलो की ओर कदम बढा दिये और चोर ने अपने घर की ओर प्रभात की सुनहरी किरणे फूटी । खजाची ने ज्यो ही खजाना खोला तो उसे ज्ञात हुआ कि दो जवाहरात के डिब्बे कोई चुराकर ले गया है। खजाची विचारने लगा कि चोरी हुई है तो मुझे भी इस सुनहरे अवसर से लाभ उठाना चाहिए । जो दो डिव्वे शेप बचे थे वे उसने धीरे से अपने घर पहुँचा दिये । फिर राजा से निवेदन किया, राजन् ! आज रात को राज-खजाने मे चोरी हो गई है । जवाहरात के चार डिब्बे चोर चुराकर ले गया है। __राजा ने पहरेदारो को बुलाकर पूछा-चोरी कैसे हुई ? तुम पहरा दे रहे थे या नीद ले रहे थे। पहरेदारो ने कहा-राजन् । रात को एक सेठ आया था, हमने उससे पूछा कि तुम कौन हो, तो उसने अपने आपको चोर बतलाया। चोर कहने से हमने सोचा यह चोर नही आपके ही द्वारा प्रेषित कोई विशिष्ट अधिकारी है, हमारे पूछने पर नाराज होकर यह अपने आपको झूठ-मूठ चोर कह रहा है। ___राजा ने सोचा वह वस्तुत वहुत ही तेज-तर्रार निकला। वह साहूकार नही चोर ही था, पर साधारण चोर मे कभी भी इस प्रकार का साहस नही हो सकता । वह सत्यवादी है। राजा ने अपने प्रधानमन्त्री अभय से कहा-उस चोर का अवश्य ही पता लगाना चाहिए, यदि आज उपेक्षा की गई तो वह दिन भी दूर नहीं है जिम दिन खजाने मे मक्खियाँ भिनभनाने लगेगी। मन्त्री अभय ने चोर का पता लगाने के लिए राजगृह मे ढिढोरा पिटवाया कि जिसने गत मे राज-खजाने मे चोरी की हो वह राजसभा मे उपस्थित हो जाय। लोगो ने दिढोरा सुना। वे खिल-खिलाकर हँस पडे । एक-दूसरे से
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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