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________________ २८८ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ कहने लगे कि ज्ञात होता है कि गजा पागल हो गया है । आज दिन तक न ऐसा कभी मुना है, न देखा है । कही पर इस तरह चोर पकडे गये है ? कोई भी कैसा भी चोर क्यो न हो, वह गजदरबार में आकर ऐसा कभी नहीं कह सकता कि मैं चोर हूँ। ढिंढोरा पीटता हुआ व्यक्ति आगे बढ़ रहा था। वह ज्यो ही चोर के द्वार पर पहुँचा । चोर ने ढिढोरा सुना, मन ही मन विचारने लगा, आज मेरे मत्यव्रत की कठोर परीक्षा है। पहले भी मैं इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ हूँ। सत्य की अपराजेय शक्ति के मैंने साक्षात दर्शन किये हे । अब मैं पीछे नही हट सकता। रात मे मैने अपना सही रूप राजा, मत्री ओर पहरेदारो के सामने रखा है । अव भी वही रूप सामने रखूगा। प्राण भले ही चले जायं, पर मैं सत्य को छोड नही सकता। उसने सिपाहियो से कहा-गत को राज-खजाने मे मैन चोरी की है। सिपाहियो ने उसे पकडकर राजा के सामने उपस्थित किया। राजा ने उसे पहचान लिया। राजा ने पूछा-"क्या तुमने राज-खजाने मे चोरी की थी" चोर-'राजन् मैं तो आपको रात मे ही स्पष्ट रूप से बता चुका हूं।' राजा--"स्पष्ट रूप से बताओ, तुमने रात को क्या चुराया ?" चोर-“गत को ही मैने बताया था कि मैने दो जवाहगत के डिब्बे चुराये है।" राजा-"किन्तु खजाने मे से चार डिव्ये गायब हो गये है।" चोर--"मैने तो दो डिब्बे चुराये है । शेप के सम्बन्ध में मुझे कुछ मी ज्ञात नहीं है । यदि मुझे झूठ ही बोलना होता तो स्वेच्छा से यहाँ पर नहीं आता और रात को भी आपके सामने मिथ्या बोलता। मैने एक बार भगवान महावीर की वाणी सूनी है और उससे प्रभावित होकर सत्य बोलने की प्रतिज्ञा ग्रहण की है जिसके कारण ही प्राणो की बाजी लगाकर के भी आपकी राज सभा मे उपस्थित हुआ है । सत्य ने ही मेरे मन मे बल पैदा किया है।" राजा के भय से कोपाध्यक्ष ने अपनी भूल स्वीकार की। राजा ने चोर की सत्यवादिता से प्रभावित होकर उसे कोपाध्यक्ष के महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया। सत्य का मार्ग कठिन है, पर सत्य की सदा विजय होती है।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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