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काई नही
नमि राजर्षि ने अध्यात्म चिन्तन की गहराई मे डुबकी लगाते हुए कहा - "वे हम लोग है जिनके पास कुछ भी नही है, सुख पूर्वक रहते है, सुख पूर्वक जीते है | मिथिला जल रही है उसमे मेरा कुछ भी नही जल रहा है ।" पुण और स्त्रियो से मुक्त तथा व्यवसाय से निवृत्त भिक्षु के लिए कोई वस्तु प्रिय भी नही होती और अप्रिय भी नही होती ।
सव बन्धनो से मुक्त ‘मै अकेला हूं, मेरा कोई नही है ।'
इन्द्र ने अनुभव किया मिथिला तो क्या राजपि शरीर, मन, इन्द्रिय, उनके विषय-भोग, भोह और अज्ञान इन सभी को पारकर ऐसी आध्यात्मिक दुनिया में पहुँच गये है जहाँ पर उनका कोई शत्रु नही है, सभी मित्र ही मित्र है ।
वह उनके आध्यात्मिक तेजस्वी जीवन से प्रभावित होकर उनके चरणो मे गिर पडा । उनकी प्रशसा के मधुर गीत गाता हुआ अपने स्थान लौट गया ।
- उत्तराध्ययन ६