________________
महावीर युग की प्रतिनिधि कथाए
शब्द सुनाई दे रहा था, अब क्यों नहीं दे रहा है ? क्या अब चन्दन विमना दन्द हो गया है
मन्त्री ने कहा--" स्वामिन् । ककणो के घर्पण का शब्द आपको नही सुहा रहा था । उस शब्द ध्वनि से आपको अपार कष्ट हो रहा था, जत आपकी शान्ति के लिए रानियो ने सोभाग्य चिह्न स्वरूप एक-एक करुण को रखकर शेप सभी ककण उतार दिये हैं । एक ककण से घर्षण नहीं होता, और घर्षण के विना शब्द कहाँ से हो ।"
राजा के लिए यह घटना केवल घटना नही रही । प्रस्तुत घटना ने राजा की मनोगत बदल दी । वह चिन्तन करने लगा - जहाँ अनेक है, वहा संघर्ष है, दुख है, पीडा है । जहाँ पर एक है वहाँ पर शान्ति है, जहां शरीर, इन्द्रिय, मन और इनसे भी आगे धन एवं परिवार की बेतुकी भीड है वहा पर दुस है जहाँ केवल एक आत्मभाव है वहाँ पर सुख ही सुख है ।
राजा के अन्तर्मन में वैराग्य-भावना जागृत हुई, वह निर्ग्रन्थ मुनि हो गया । सारा राज्य वैभव ज्यो का त्यो छोडकर नगर के बाहर एकान्तयान्त स्थान में जाकर साधना के लिए खड़ा हो गया ।
अमराओ का मधुर नृत्य चल रहा था । शक्रेन्द्र उस नृत्य को देखने मे तीन था कि उसे ज्ञात हुआ कि नमि राजा यकायक मुनि वन गये हैयह त्याग उन्होंने भावुकतावश किया है या इसके पीछे चिन्तन है । ह् जानने के लिए स्वर्ग का राजा इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर नमि राजर्षि के पास आया और राजर्षि से कहा
२८२
ܙܙܕ
――
'हे राजपि । आज मिथिला के प्रासादो ओर गृहों में कोलाहा से परिपूर्ण दारण शब्द क्यो सुनाई दे रहे है
"
राजर्षि ने एक सुन्दर रूपक के माध्यम से कहा- "मथुरा मे एक नैत्य वृक्ष था, जो शीतल छाया वाला, मनोरम, पत्र, पुष्प एव फलों से युक्त आर बहुत पक्षियों के लिए उपकारक था ।"
दिन प्रचण्ड आधी ने उस मनोरम वृदा को गिरा दिया। उसके गिर जाने से उसके नाति रहने वाले ये पक्षी, दुखी, शरण जार पीडित
कन्दत कर रहे हैं।"
ह
यह वायु है।
इन्द्र पुनह तत रहा है। भगवन् आप अपने रविवास की जोर
1
यह नापका मन्दिर नहीं देते "