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मेरा कोई नहीं
मालव प्रान्त मे सुदर्शनपुर नामक एक सुन्दर नगर था। मणिरथ वहाँ का राज्य सचालन करता था। उनका कनिष्ठ भ्राता युगवाहु था। उसकी पत्नी का नाम मदनरेखा था । मदनरेखा रूप मे अप्सरा से कम नही थी। मदनरेखा के रूप पर मुग्ध होकर मणिरथ ने कपट से युगवाहु को मार दिया। उस समय मदनरेखा गर्भवती थी। उसने भयकर जगल मे एक पुत्र को जन्म दिया। उस नवजात गिशु को मिथिला नरेश पद्मरथ अपने राजमहल मे गया और उस बालक का नाम 'नमि' रखा।
राजा पद्मरथ धर्मनिष्ठ था। उसके अन्य कोई भी सन्तान नही थी अत नमि का वहुत ही स्नेह से पालन-पोपण किया। राजा पद्मरथ ने जव श्रमण धर्म स्वीकार कर लिया तब 'नमि' मिथिला का राजा बना।
एक वार राजा 'नमि' को भयकर दाह-ज्वर की पीडा हुई। छह मास तक घोर वेदना होती रही। उपचार होते रहे किन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ।
एक अनुभवी वैद्य आया। उसने शरीर पर चन्दन का लेप लगाने के लिए कहा । रानियाँ चन्दन घिसने लगी। उनके हाथो मे पहने हुए ककण वज रहे थे । वेदना से आकुल-व्याकुल राजा ककण की आवाज सहन न कर सका । उसने ककण उतारने को कहा । सभी रानियो ने सौभाग्य-चिह्न स्वरूप एक-एक करुण को छोडकर सभी ककण उतार दिये ।
कुछ समय के पश्चात् राजा ने मन्त्री से पूछा-"पहले ककण का
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