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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
में गिर पड़ा भन्ते । अनजान मे हमने आपकी जो अवहेलना की है, हमे क्षमा करे | मुनि क्षमाशील होते हैं वे किसी पर भी क्रोध नही करते । यक्ष मुनि के शरीर से निकलकर अलग हो गया ।
मुनि ने मधुर मुस्कान विनेरते हुए कहा - मेरे अन्तर्मानस मे न पहले प्रक्रेप था, न अभी हे और न आगे भी रहेगा । किन्तु मेरी सेवा मे जो यक्ष हे उसी का यह चमत्कार है ।
भद्रा और रुद्रदेव के अत्यधिक स्नेह भरे आग्रह से मुनि ने आहार ग्रहण किया । सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण छा गया। जन-जन की जिह्वा पर ये बोल फूट रहे थे कि जाति से कोई महान नही होता, ये मुनि चाण्डाल 录 पुत्र है, पर इनके तप की महिमा और गरिमा तो देखो । साक्षात् देव भी इनके चरणो की उपासना करते है ।
रुद्रदेव की जिज्ञासा पर मुनि ने सच्चे यज्ञ के मर्म का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा-तप ज्योति है । जीव ज्योति स्थान है । मन, वचन आर की मप्रवृत्ति घी डालने की कछियाँ है । शरीर अग्नि जलाने के कण्डे है। कर्म ईंधन है । सयम की प्रवृत्ति शान्ति पाठ है, इस प्रकार प्रशस्त हिमक यज्ञ कर अपने जीवन को चमकाइए ।
मुनि के त जीवन से सभी के जीवन का नक्शा ही बदल गया ।
- उत्तराध्ययन १२
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