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तप पूत जीवन
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सारा भोजन बन रहा है और दिया जा रहा है, उसमे से कुछ भोजन मुझे भी दिया जाय ।
रुद्रदेव ने स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा - यह भोजन तो ब्राह्मणो के लिए है, हम तुम्हे यह भोजन नही देगे ।
यक्ष ने कहा- किसान ऐसी भूमि मे बीज वपन करता है, जहाँ पर उसके पैदा होने की आशा होती है । मुझे दान दो तुम्हे अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा ।
रुद्रदेव ने कहा- मुझे पता है वह स्थान कौनसा है ? ब्राह्मणो से बढकर कोई भी उत्तम क्षेत्र नही है ।
यक्ष ने कहा- जिनमे क्रोध की आँधी आ रही हो, मान के सर्प फूत्कारे मार रहे हो, माया और लोभ के बवण्डर उठ रहे हो, वे जाति से भले ही ब्राह्मण हो किन्तु गुणो से ब्राह्मण नही है । वे वेदो का सही अर्थ नही जानते है, वे पुण्य क्षेत्र नही है ।
रुद्रदेव ने कहा - भले ही यह अन्न-पान सडक र नष्ट हो जाये, किन्तु ब्राह्मणो का अवर्णवाद बोलने वाले, मै तुम्हे नही दूँगा ।
यक्ष ने कहा- मैं जितेन्द्रिय हूँ, समिति और गुप्ति से युक्त हूँ, निर्दोष आहार लेता हूँ, यदि तुम मुझे आहार प्रदान नही करोगे, तो इस विराट् यज्ञ का फल भी तुम्हे प्राप्त नही होगा ।
रुद्रदेव ने आपे से बाहर होकर कहा- छात्रो। इसे मार-पीटकर, गलहत्या देकर बाहर निकाल दो ।
आदेश प्राप्त होते ही छात्र मुनि को मारने के लिए आगे वढे ।
भद्रा ने देखा महान् अनर्थ होने जा रहा है। उसने उच्च स्वर से कहा- यह तो महान ऋषि है, इसने ही मेरा त्याग किया है । देवता के अभियोग से उत्प्रेरित होकर राजा ने मुझे इसे प्रदान किया किन्तु इस महामुनि ने मुझे मन से भी नही चाहा । इसकी अवहेलना मत करो । कही यह अपने दिव्य तेज से तुम्हे भस्म न करदे |
यक्ष ने मुनि को मारने के लिए आये हुए युवको को भूमि पर गिरा दिया और उनको ऐसा मारा कि सारा शरीर लहू-लुहान हो गया, और रुधिर के वमन होने लगे ।
छात्रो की वह स्थिति देखकर रुद्रदेव भद्रा के साथ मुनि के चरणो