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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाए हान् अवहेलना की है, यदि इसका पाणिग्रहण उसी मुनि के साथ किया गाय तो मैं इसे छोड सकता हूँ अन्यथा तुम चाहे कितने भी उपचार करो, सफलता प्राप्त नहीं होगी। राजा ने कुमारी को जीवित रखने की अभिनापा से यक्ष की बात स्वीकार की। विवाह के योग्य वस्त्रालकारो से सुसज्जित कर ओर विवाह की नमस्त सामग्री लेकर राजा यक्षायतन मे पहुंचा। मुनि को नमन कर प्रार्थना करने लगा-मह । मेरी कन्या को स्वीकार करे। मुनि ने कहा-मै श्रमण हूँ, श्रमण के सामने ऐमी अनुवित वाते नहीं केया करते । जिम मकान मे स्त्री रहती हो वहाँ पर मुनि नहीं रहते, फिर त्री के साथ पाणिगहण का प्रश्न ही कहाँ ? मुनि सदा मोक्ष के इच्छुक हे वे शाश्वत आनन्द चाहते है, वे स्त्रियो मे किस प्रकार आसक्त हो सकते है ? कन्या को मुनि के श्री चरणो मे छोडकर राजा उलटे पैर अपने महलो मे लौट गया। यक्ष रातभर विविध प्रकार के रूप बनाकर कन्या को उगता रहा । प्रभात हुआ। कन्या अपने पिता के पास पहुंची और रात की चीती घटना पिता को सुनाई। पुरोहित रुद्रदेव राजा के पास ही बैठा था। उसने कहा-गजन् । यह ऋपि-पत्नी है। ऋषि के द्वारा त्यक्त होने से यह महज ही ब्राह्मण की सम्पत्ति हो जाती है । अत आप इसे किसी ब्राह्मण को प्रदान कर दे। गजा ने वह कन्या उसे दे दी। पुरोहित ने एक विराट् यज्ञ का आयोजन किया। दूर-दूर के विद्वान उस यज्ञ मे आमन्त्रित किये गये । वढिया भोजन की तैयारी होने लगी। मुनि हरिकेशबल एक-एक मास का उग ता कर रहे थे। पारणे के लिए घूमते हुए उमी यज्ञ मण्डप मे जा पहुंचे। मुनि के विद्रुप रूप को देखकर जाति-मद मे उन्मत्त बने हुए वे ब्राह्मण खिल-खिलाकर हंस पडे । अरे । वह नाना-न लूटा नर-पिशाच कहाँ मे आ गया ? किस आगा से आया है ? दने शीत्र ही नहाँ से हटा दो। उन नागपो ती बहानी-करतून देलकर उन्हे प्रतियोत्र देने के निए तिन्दुर यद मुनि के शरीर में प्रवेश कर गया। उगन कहा - 'म अनार, नयमी, ब्रह्मवारी, परिगहन रहित ह। भिक्षा का समय है, या निक्षा प्राप्त करने के लिए यहा पर जाना है। आपके यहा तो इतना
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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