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________________ तपःपूत जीवन मथुरा नगरी मे राजा शख राज्य कर रहे थे। स्थविर मुनियो से धर्म के मर्म को श्रवण कर उनके अन्तर्मानस मे वैराग्य का पयोधि उछाले मारने लगा। राज्य को त्यागकर वे मुनि बने । गम्भीर अध्ययन कर गीतार्थ वने। एक बार वे परिभ्रमण करते हुए हस्तिनापुर आये। हस्तिनापुर मे प्रवेश करने के दो मार्ग थे । एक मार्ग का नाम हुताशन था। वह सारे दिन तप्त तवे की तरह जलता रहता था। भीष्म ग्रीष्म मे यदि कोई भूला-भटका पथिक उस मार्ग पर चला जाता तो वह रास्ते मे ही अपने प्यारे प्राण खो देता। मुनि शख ने मोचा, मुझे किस मार्ग से जाना चाहिए। उन्होने सडक के सन्निकट भव्य-भवन के गवाक्ष मे बैठे हुए सोमदेव ब्राह्मण से जिज्ञासा प्रस्तुत की कि मुझे किस मार्ग से जाना चाहिए? मोमदेव के अन्तर्मानस मे विद्वे पाग्नि जल रही थी। उसने मुनि को हुताशन मार्ग की ओर जाने का सकेत किया। मनि के मुस्तैदी कदम उसी मार्ग की ओर चल पडे। वे लब्धि सम्पन्न थे। उनके पाद-म्पर्श से मार्ग बर्फ की तरह ठण्डा हो गया । सोमदेव को अपने पापाचरण पर पश्चाताप हुआ। मुनि महान् है । इन्हीं के पुण्य के प्रवल प्रभाव में अग्नि-जैसा मार्ग भी हिम-स्पर्श हो गया है। में पापी है। मैने भय कर पाप-कर्म किया है। उसने दौडकर मुनि के चरण पकड लिये और पाप से मुक्त होने का उपाय पूछा । मुनि ने श्रमण धर्म की महत्ता का २७६
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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