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संयम का चमत्कार
वाराणसी भारत की एक महान नगरी थी। उसकी शोभा और समृद्धि अलकापुरी के समान थी। सुन्दर, विशाल और गगनस्पर्गी भव्यभवन जन-जन के मन को मन्त्रमुग्ध कर देते थे । नगरी के बाहर गगा महानदी कल-कल छल-छल वह रही थी।
गगा के किनारे मृतगगानीर नामक सरोवर था। उसका पानी अमृत के समान मधुर और स्फटिक के समान निर्मल था। उसमे विविध प्रकार के कमल खिल रहे थे। उनकी मधुर सौरभ से सारा वातावरण महक रहा था। हजारो जलचर उस सरोवर मे निर्भय होकर निवास करते थे।
सरोवर के सन्निकट ही मालुकाकच्छ नामक एक सुन्दर वन-खण्ड था। उसमे हजारो वृक्ष थे, जिनकी सघन छाया सारे दिन छायी रहती थी और उस शीतल छाया मे अनेक वनचर पशु क्रीडा किया करते थे।
सन्ध्या का समय था। धीरे-धीरे अन्धकार दैत्य के समान बढ रहा था। उस समय दो कछुए आहार की अन्वेपणा के लिए धीरे से सरोवर के बाहर निकले । सरोवर के सन्निकट चमचमाती हुई रेती पर वे चहलकदमी करने लगे।
उमी समय मालुकाकच्छ मे रहने वाले दो शृगाल पानी पीने के लिए मरोवर पर आए । शृगालो ने कलुओ को घुमते हुए देखा । उनकी आँखो मे नई चमक आ गई। उनकी जवान लपलपा उठी। उन्होने निश्चय किया कि आज हम इन कछुओ का आहार करेगे, क्योकि ये मधुर जल मे निवास
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