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________________ २६६ एक रहस्य सबसे ऊपर का मिट्टी का लेप गल जाय और नष्ट होकर तूबे पर से हट जाय, तब क्या होगा ?" "भगवन् । तव तूवा कुछ हल्का हो जायगा ।" 1 "हाँ कुछ हल्का तो हो ही जायगा । तुम ठीक कहते हो । और हल्का हो जाने से क्या होगा ? क्या वह पृथ्वीतल से कुछ ऊपर आकर नही ठहरेगा ?" - प्रभु ने प्रश्न किया । "ऐसा ही होगा भगवन् ।' "इसी प्रकार, यदि उस तूबे का दूसरा मिट्टी का लेप भी गल जाय और नष्ट हो जाय, तब वह पृथ्वीतल से कुछ और अधिक ऊपर आकर ठहरेगा और जव क्रमश उसके आठो मिट्टी के लेप गलकर नष्ट हो जायँगे और तूबे से पृथक् हो जायेंगे, तब क्या होगा ?" इन्द्रभूति गौतम भगवान के ज्ञान तथा विवेचन की सटीक सरलता पर मुग्ध हो रहे थे । वे बोले - "मै रहस्य जान गया प्रभु । तब वह तूवा जैसे का तैसा शुद्ध और हल्का हो जायगा और जल की सतह पर आकर तैरने लगेगा ।" अपने विवेकी शिष्य से यह समुचित उत्तर पाकर भगवान ने स्पष्ट समझाया " इसी प्रकार, हे गौतम । प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शन शल्य विरमण से क्रमश आठ प्रकृतियो को नष्ट करके जीव आकाशतल की ओर उड़कर लोकाग्र मे स्थित हो जाते है । गौतम । जीव इस प्रकार लघुत्व को प्राप्त होते है । स्पष्ट हुआ न "भगवन् । आप सर्वज्ञ है ।" ?"
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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