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________________ महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ उस तूबे पर कोई व्यक्ति अच्छी तरह से दर्भ और कुश लपेट देता है। और फिर उस पर मिट्टी का लेप भी चढ़ा देता है। कुछ समय तक उसे धूप सुखा देता है | जब वह अच्छी तरह सूख जाता है तब पहले के समान ही उस तूबे पर फिर से दर्भ और कुश लपेट देता है और उसी प्रकार मिट्टी का लेप लगाकर सुखा देता है और इसी प्रकार वह आठ बार यह विधि 'दुहराता है । जव आठ वार उस तूवे पर दर्भ - कुश - मिट्टी का लेप लगकर मूख जाता है । तब वह उसे किसी जल में लेजाकर डालता है । बताओ, गौतम | वह डूबेगा या तैरेगा । २६८ भगवन् । वह तूवा जिस पर आठ लेप लग चुके है डूव ही जायेगा । एक ईपत् हास्य की मधुर रेखा प्रभु के मुखचन्द्र पर झलक आई । सौम्यता की चन्द्रिका छिटक गई । तब उन्होने अपने शिष्य को उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए समझाया - " हे गौतम | वह तूवा वास्तव मे तो हलका था। उसे जल मे डूबना नही चाहिए था । किन्तु मिट्टी के आठ वार के लेप के कारण वह गुरुता को प्राप्त हो गया और जल को लॉघकर जल के तल रही हुई धरती तक चला गया । क्यो, ऐसा ही हुआ न " "हाँ, भगवन् ! ऐसा ही हुआ ।" - इन्द्रभूति अनगार के मस्तिष्क मे तत्त्व का प्रकाश छा गया था । " इसी प्रकार, हे गौतम । जीव भी प्राणातिपात से, यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से, अठारह पाप-स्थानको के सेवन से क्रमश आठ कर्म प्रकृतियो का उपार्जन करते है | उन्ही कर्म - प्रकृतियो की गुरुता के कारण, उसी गुरुता के भार के परिणामस्वरूप जीव मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर, इस पृथ्वीतल को लाँघकर नीचे, नरक मे स्थित होते है । जीव गुरुत्व को किस प्रकार प्राप्त होते है, यह तो तुम भली प्रकार से अब समझ गये न ?" - भगवान ने पूछा । “हाँ भगवन् । मै जान गया कि जीव किस प्रकार गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ।" - मन्तुष्ट इन्द्रभूति अनगार ने उत्तर दिया । "अव हे गौतम | मै तुम्हे यह रहस्य समझाता हू कि जीव किस प्रकार शीघ्र लघुत्व को प्राप्त करते है । विचार करो, यदि उस तूबे का
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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