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________________ पाप के भागीदार __ कालसौकरिक राजगृह का सबसे बडा कसाई था। प्रतिदिन उसके कसाईखाने मे सैकडो भैसे मारे जाते थे । एक दिन राजा श्रेणिक ने कालसौकरिक को अपने पास बुलाकर कहा-"कालसौकरिक । तुम भैसा मारना छोड दो, मैं तुम्हे इतना धन दूंगा कि जिससे तुम्हारा सारा परिवार समृद्ध हो जायेगा।" सम्राट् के प्रस्ताव की अवहेलना करते हुए कालसौकरिक ने कहा"राजन् । मै आपकी अन्य कोई भी वात सहर्ष मान सकता हूँ, पर आपकी भैसा न मारने की बात मुझे बिलकुल पसन्द नही है । मुझे बिना भैसा मारे चैन ही नही पडता है।" सम्राट ने अनुचरो को आदेश देकर कालसौकरिक को अन्धकूप मे डलवा दिया । राजा प्रसन्न होकर भगवान महावीर के पास पहुँचा। वन्दन कर निवेदन किया-"भगवन् । मैने कालसौकरिक को भैसे मारने छुडवा दिये हैं।" भगवान ने कहा-"श्रेणिक । यह बिल्कुल ही असम्भव है।" "भगवन् । मैंने उसे अन्धकूप मे रखा है, वहाँ पर वह भैसो को किस प्रकार मारेगा?" भगवान ने कहा-"तुम्हारा कथन सही है, पर क्या अन गीली मिट्टी नही है ?" "भगवन् । गीली मिट्टी से क्या तात्पर्य है ?" “गीली मिट्टी से वह दिन भर भैसो की आकृति व .
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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