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________________ गृहिधर्म की आराधना दुर्लभ और मूल्यवान वस्तु कौन प्राप्त करना नही चाहता ? किन्तु वह मूल्यवान वस्तु क्या है, उसका ज्ञान ही यदि मनुष्य को हो जाय तो वेडा पार होते देर न लगे। वस्तुत यह मनुष्य जीवन ही दुर्लभ है । एक बार यह प्राप्त हो जाय और मानव अपने विवेक से चलता हुआ यदि पुरुपार्थ करे तो फिर अन्य कुछ भी दुर्लभ नही। आनन्द नामक एक गाथापति (गृहपति) की यह कथा है वाणिज्य ग्राम मे जितशत्र नामक राजा राज्य करता था। वह उदार था, न्यायप्रिय था और प्रजापालक था। ग्राम के ईशाण कोण मे धुतिपलाश नामक एक सुन्दर उद्यान था। द्युतिपलाश नामक यक्ष का आयतन होने के कारण ही उस उद्यान का यह नाम पड गया था। __ उसी ग्राम मे आनन्द अपने परिवार सहित रहता था। शिवानन्दा नामक उसकी पत्नी थी। धन-सम्पत्ति की उसके पास कोई कमी नही थी। कराडा का वह स्वामी था। उसके पास चार ब्रज (गोकुल) भी थे। प्रत्येक अज म दस हजार गाये थी। इस अपार सम्पत्ति के कारण उसे महधिक कहा जाता था। पति-परायणा सुन्दर पत्नी तथा इस अपार और अटूट सम्पत्ति के कारण उसका जीवन आनन्द से व्यतीत होता था। गृहपति आनन्द बुद्धिमान भी या और व्यवहार-कुशन भी। राजा तथा नारी प्रजा उससे सदैव मत्रणा लिया करते थे। एक वार ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान गहावीर वाणिज्य २५७
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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