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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
भी तुम अपने हृदय को शुद्ध कर सकते हो । अपने हृदय मे रहे हुए राक्षस को हटाकर तुम उसी मे सदा निवास करने वाले देवता को जागृत कर सकते हो । चलो मेरे माय हम मव के जो चरणदाता है वे भगवान महावीर समीप ही है। चलो, चलो मेरे साथ ।"
दूर-दूर में लोग इस घटना को देख रहे थे और विस्मय मे डूबे हुए थे-ऐमा भयानक गक्षम कैमे क्षणमात्र में बदल गया ? मुदर्शन ने यह कैमा चमत्कार किया?
अर्जुन को लेकर सुदर्शन प्रभु के समीप पहुंचा । केवलज्ञानी, अशरणगरण प्रभु ने पीडित अर्जुनमाली को अपनी और धर्म की गरण मे ले लिया।
माहम बटोर कर पीछे-पीछे चली आई जन-मेदिनी जय-जयकार कर उठी-'भगवान महावीर स्वामी की जय । जैनधर्म की जय ।'
प्रबजित होकर अर्जुन मुनि ने घोर तप किया । बहुत से नाममझ लोग __ अब भी उनके पूर्वकृत्यो का स्मरण कर उनकी प्रताडना करते थे और उन्हे पीटित करते थे। किन्तु अर्जुन मुनि अब धैर्य, क्षमा और प्रेम की प्रतिमति बन चुके थे। ममभाव उनकी आत्मा मे अचल होकर स्थित हो चुका था।
उसके बाद अर्जुन मुनि अपने लक्ष्य मे कभी विचलित नही हुए । उनसरी माधना-यात्रा तभी ममाप्त हुई जब वे केवलज्ञान प्राप्त करके मुक्त हो गये।
अन्तकृतद्वशा० ६३