________________
६२
चलो मेरे साथ !
मगध की राजधानी राजगृही अपने समय की एक अनुपम नगरी थी। उस नगरी मे सुख और समृद्धि तो चारो ओर बिखरी दिखाई देती ही थी, इसके साथ ही प्रकृति की छटा भी उस नगरी के आस-पास दर्शनीय ही थी । चारो ओर सुन्दर-सुन्दर उद्यान ओर सरोवर फैले हुए थे । उन स्वच्छ सरोवरो मे स्नान कर राजगृही के नागरिक ओर अन्य पथिक अपनी सारी कान भूल जाते थे तथा उन उद्यानों मे घडीभर के लिए विश्राम कर लोग अपने सारे विपाद को दूर कर देते थे ।
भगवान महावीर जिस समय इस भूतल पर विचरण करते हुए भव्य जीवों का कल्याण कर रहे थे, उस समय की यह कथा है
अर्जुन नामक एक माली राजगृही में रहता था । नगरी में बाहर उसका एक विशाल उद्यान था । भाँति भाति के सुन्दर, सुगन्धित पुष्पों से उसका वह उद्यान सदैव एक रंग-बिरंगे गलीचे की तरह शोभित होता था ।
अर्जुन की आजीविका का साधन वह उद्यान ही था । उसी उद्यान में एक यक्ष- मन्दिर था । यक्ष के हाथ मे एक विशाल मुद्गर था । इसीलिए नोग उस पक्ष को 'मुद्गरपाणि' यक्ष के नाम से पुकारने लगे थे । अर्जुन माली उस यक्ष को अपना कुलदेवता मानकर बडी भक्तिपूर्वक उसकी पूजा दिया करता था ।
सनार में जच्छाई और बुराई साथ-साथ चलती ही रहती है। कुछ तोग अच्छे होते ह तो कुछ लोग बुरे भी। राजगृही नगरी में भी उस समय
२५२