________________
२५१
लेकिन अब राजप की नीद सचमुच ही टूट गई थी । उसी क्षण विजली की कौध के समान उनके बहुत समय से बन्द ज्ञान - नेत्र 'खुल गये थे । उन्हे विचार आया- अरे, यह क्या हो गया था ? मै कैसी निद्रा मे डूब गया था ? पवित्र मुनि-जीवन की मंगलमय मर्यादा को तिलांजलि देकर मै किन सासारिक प्रलोभनो के गर्त मे गिर पडा था ? अरे, तनिक-सी असावधानीवश मैने घोर तपस्या द्वारा अर्जित अपनी समस्त चरित्र - सम्पदा ही लुटा दी ?
दृष्टिदोष
राजप की नीद खुल गई ।
पश्चाताप की अग्नि ने उनके हृदय मे जमकर आ बैठी सारी दुर्बलता को भस्म कर दिया ।
दूसरे दिन प्रात काल होते ही राजप अपने शिष्य पथक के साथ उस नगरी से विहार कर गये । कठोर सयम और तपस्या द्वारा उन्होने कुछ काल के लिए अपने जीवन मे आई सारी शिथिलता को दूर कर दिया और भविष्य मे कभी एक क्षण के लिए भी अपने जीवन मे प्रमाद नही आने दिया ।
इस शुभ समाचार को सुनकर उनके सारे शिष्य फिर से उनकी सेवा मे लौट आये ।
भूले-भटके प्राणियो को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए अन्त मे पुण्डरीक पर्वत पर समाधि धारण कर राजर्षि ने मोक्ष प्राप्त किया ।
पलभर भी प्रमाद नही करना चाहिए। सावधान मनुष्य को अपनी दृष्टि आत्म-कल्याण के विन्दु पर स्थिर रखनी चाहिए । निर्दोप दृष्टि ही मुक्ति की मजिल को देख सकती है ।
-ज्ञाता धर्म कथा
✩