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दृष्टिदोष
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यह ससार अच्छी और बुरी वस्तुओ से भरा हे । सत्य और अगत्ग की ऑखमिचौनी यहाँ प्रतिक्षण चल रही है। सावधान व्यक्ति को ओरो खोलकर आगे बढना चाहिए।
भरतक्षेत्र के तीन खण्डो के स्वामी श्रीकृष्ण द्वारिका नगरी में शासन करते थे। उनके राज्य मे चारो ओर सुख-समृद्धि थी। वे न्यायी थे और प्रजा को पुत्रवत् प्यार करते थे। उनके राज्य मे अन्याय नहीं हो सकता था, अनीति नही पनप सकती थी। वे दूध का दूध और पानी का पानी करने की क्षमता रखते थे।
श्रीकृष्ण के राज्य मे एक सेठानी रहती थी। उसका नाम थायावच्चा। उसके एक पुत्र था, जिसका नाम था थावच्चाकुमार । सेठानी के पास जितना अखूट धन था, उसके पुत्र के पास भी गुण, कुशलता तथा विद्वत्ता की उतनी ही सम्पत्ति थी।
जव थावच्चाकुमार सभी विद्याओ मे पारङ्गत हो गया तथा यौवन मे उसने प्रवेश किया तब उसकी माता ने बत्तीस सुलक्षणा सुन्दरी कन्याओ के साथ उमका विवाह कर दिया। स्वय थावच्चाकुमार भी रूप में कामदेव के समान था। उसके दिन आनन्द के साथ व्यतीत हो रहे थे।
उस समय भगवान नेमिनाथ सर्वज्ञ स्थिति मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करते हुए भव्य प्राणियो को धर्म तथा आत्मकल्याण का उपदेश देते हुए, द्वारिका नगरी मे पधारे । प्रभु की अमृतवाणी का क्या कहना ? एक ही बार उनके वचन सुनकर प्राणी ऐसा अनुभव करते थे जैसे
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