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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
आए ? कुमार ने उत्तर दिया- 'अपनी प्रिया मायादेवी का रक्षण करने के लिए मैने प्रियकर को सौपा है ओर प्रियकर की रक्षा करने को मैने मायादेवी को सौपा है । अव, चलो हम भी वहाँ चले ।'
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दोनो लौटे, किन्तु वहाँ न प्रियकर था, न मायादेवी । यह देखकर सुन्दरी बहुत दुखी हुई । कुमार भी कपटपूर्वक मूच्छित हो गया । कुछ देर बाद अपनी सज्ञा लौटा कर वह बोला-' है वहिन । अब हम क्या करे तेरा पति मेरी प्रिया को लेकर भाग गया है । यह उसने ठीक नही किया ।' सुन्दरी सोचने लगी- मेरा पति इसकी प्रिया का हरण कर ले गया । वह अनार्य, निर्दय तथा कृतघ्न प्रतीत होता है ।
कुमार ने फिर पूछा - 'भद्रे | अब हम क्या करे " सुन्दरी ने उत्तर दिया- 'भाई मुझे तो कुछ भी समझ मे नही आता । जैसा तुम ठीक समझो वैसा ही करे ।'
कुमार ने कहा - 'तू सत्य कहती है । तुझे कुछ समझ मे नही आता । देख मेरी बात सुन, इस संसार मे यह जीव अकेला ही प्रयाण करता है । इसमे प्रिय कौन ? प्रिया कौन ? सयोग अपने परिणाम मे वियोग देने वाले ही होते है और उदयकाल अस्त को प्राप्त होता है । भोग महारोग के समान दुखदायी होते है । यह जानकर वहिन | सम्यक्त्व को अगीकार कर ।' सुन्दरी को बोध हुआ। वह लौटकर अपने घर आ गई ।
यह कथा सुनाकर भगवान ने कहा-
"हे मणिरथकुमार उस सुन्दरी का जीव तुम हो और उस जन्म का तुम्हारा पति प्रियकर ससार मे भ्रमण करता हुआ अब इस वन मे इस मृगी के रूप मे उत्पन्न हुआ है । आज तुम्हे देखकर इस मृगी को अपने पूर्व भव का स्मरण हो आया है और वह तुमसे स्नेह करने लगी है ।"
सुनकर और बोध पाकर कुमार ने भगवान से प्रार्थना की- "प्रभु । मैं इम असार संसार से थक गया हूँ । मुझे अपनी शरण मे लीजिए ।" और वह भगवान के चरणो मे झुक गया ।
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