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________________ प्रतिवोध या राक्षसी, पिशाचिनी की तरह उमशान मे रहने लगी। उसके पिता ने राजा से प्रार्थना की-'हे देव । मेरी पुत्री किसी दुष्ट ग्रह से गसित हो गई है। आप घोपणा करा दे कि जो कोई व्यक्ति उसे अच्छी कर देगा उसे मैं मनोवाछित वस्तु प्रदान करूँगा।" गजा ने घोपणा करा दी। राजकुमार ने भी यह सुना और सोचा कि यह प्रेम की दीवानी है, प्रेमरूपी पिशाच से ही ग्रस्त है। इसे अन्य कोई रोग नही है । मै उसे प्रतिवोध दूंगा। कुमार एक स्त्री का शव लेकर श्मशान मे पहुँचा। शव उसने सुन्दरी के सामने रख दिया। वोला कोई किसी से नहीं। राजकुमार भी चुपचाप सब कुछ वैसा ही करने लगा जैसा सुन्दरी किया करती थी। यह देखकर एक दिन सुन्दरी ने कुमार से पूछा-'यह तुम क्या करते हो?' राजकुमार ने कहा-'यह मेरी सौभाग्यवती, गुणवती प्रिया है। इसका शरीर कुछ अस्वस्थ हो गया है, लोग कहने लगे कि यह तो मर गई है। इसका सस्कार कर देना चाहिए, वे झूठ बोलते है। इसलिए मैं इसे यहाँ ले आया हूँ।' सुनकर सुन्दरी ने कहा-'तुमने ठीक किया। समान स्वभाव वाले हम अव मित्र है।' राजकुमार बोला-'तू मेरी बहिन और यह मेरा बहनोई है । इसका नाम क्या है ? सुन्दरी ने बताया और कुमार की प्रिया का नाम पूछा। भाई-बहिन बनकर वे रहने लगे। दोनो मे से कोई जव किसी कार्य से कही जाता तो अपना शव दूसरे को सौप जाता। एक दिन कुमार ने सुन्दरी से कहा 'बहिन | आज तेरे पति ने मेरी प्रिया से कुछ कहा, किन्तु मैं ठीक से वह समझ नहीं सका।' सुन्दरी क्रोधित हुई, पति से बोली-'मैंने तुम्हारे लिए कुल, गृह, माता-पिता आदि सबको छोडा और तुम अन्य स्त्री की अभिलापा करते हो' पति ने कोई उत्तर नहीं दिया। शव था, वह भला क्या उत्तर देता? एक दिन सुन्दरी अपने पति का शव कुमार को सौप कर गई। कुमार ने दोनो शव एक कुएँ मे डाल दिए और सुन्दरी के पास पहुंचा। उसे देवा र सुन्दरी ने पूछा-'अरे भाई । तुम उन दोनो को किसे सौप कर
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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