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महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ
भी उसके पीछे-पीछे भगवान के ममीप जा पहुंची। राजकुमार ने भगवान से पूछा
"प्रभु | मुझे अत्यन्त स्नेह करने वाली यह म गी कौन है ?"
भूतकाल, वर्तमान और भविष्य मे घटित हुई, हो रही तथा होने वाली सभी बातो को जानने वाले सर्वज्ञानी भगवान ने उपस्थित सभी प्राणियो को बोध देने के लिए कुमार को उसके पूर्व भव की कथा बताई
"इस भरतक्षेत्र मे साकेतपुर नाम का एक नगर है। उस नगर में मदन नाम का गजा था। अनग नाम का उसका कुमार था। उस नगरी मे कुवेर के समान धनाढ्य वैश्रयण नामक एक सेठ रहता था जिसका प्रियकर नामक एक पुत्र था । वह सौम्य, मज्जन, कुशल, दाता, दयालु और श्रद्धालु था। प्रियमित्र नामक सेठ की कन्या सुन्दरी से उसका विवाह हुआ था। पति-पत्नी मे अगाध स्नेह था।
एक दिन प्रियकर का गरीर व्याधिग्रस्त हुआ। सुन्दरी ने पति की सेवा मे दिन-रात एक कर दिया। किन्तु अशुभ कर्मो के उदय से होनहार होकर ही रही। प्रियकर की मृत्यु हो गई । परिवार के लोग रो-धोकर अन्त मे अन्तिम सस्कार हेतु उसका शव घर से बाहर निकालने लगे।
किन्तु सुन्दरी का मन अपने पति के प्रति प्रगाढ स्नेह से लिप्त था। वह उसका सस्कार करने ही नहीं देती थी। सबने समझाया, किन्तु मोहभरी पत्नी समझती ही नही थी। वह पति की मत देह से लिपट-लिपटकर उससे बोलती जाती थी, जैसे कि वह जीवित ही हो । मोहान्ध व्यक्ति को सार-असार का ज्ञान होता ही कहाँ है ?
थक कर परिवार वाले वहाँ से चले गये। सुन्दरी शव को लिए बैठी रही। दूसरे दिन शव से दुर्गंध आने लगी किन्तु प्रेम के अधीन हुई वह मोहान्ध प्रेमिका उसे न छोड सकी। स्वजनो ने फिर समझाया, किन्तु वह न समझी और यह सोचकर कि लोग उसे पागल समझते हे, वह शव को उठाकर श्मशान में पहुंची।
भूख मिटाने के लिए वह नगर मे से भिक्षा मॉग लाती और उसमे से अच्छी-अच्छी वस्तुएँ पति के सामने रखकर कहती-'प्रियतम । इसमे से जो मग्न भोजन हो वह आप ले तथा जो नीरम हो वह मुझे दे।'
इस प्रकार वह नीरम भोजन करती हुई किसी कापालिक की पुत्री