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प्रतिबोध
किसी युग मे इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र मे काल्दी नामक एक नगरी थी। उस नगरी से एक योजन दूर कौशाम्ब नाम का एक मान वन था । अनेक प्रकार के वन्य-पशु वहाँ स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण करते थे।
एक दिन बहुत से मृगो का एक झुण्ड चौकडियाँ भरता उस वन में विचरण कर रहा था। अचानक कोई आहट पाकर वह सारा झुण्ड वन में विलीन हो गया, केवल एक मृगी भाग न सकी। राजकुमार मणिरय कुमार अपना धनुप-बाण ताने वहाँ आ पहुँचा। मृगी अपने विवश भोले नयनो से उसे देखती रह गई । राजकुमार मगया पर जब निकलता था तब वह दया को महलो मे ही छोड आता था।
किन्तु आज एक आश्चर्य हुआ। मृगी आँखो मे आँसू भरे राजकुमार का स्थिर होकर देख रही थी, एकटक | भागने का कोई उपक्रम नही। राजकुमार भी स्तव्ध । धीरे-धीरे वह मगी अपनी मृत्यु की चिन्ता त्याग कर राजकुमार के समीप आकर खडी हो गई। राजकुमार के हृदय को भी जान क्या हुआ कि उसने अपना धनुप-बाण तोड कर फेक दिया और स्नेहप्वक मृगी की देह को सहलाने लगा। मगी चूपचाप अपनी बडी-बडी आखा से ऑसू ढलकाती रही। यह देखकर राजकुमार ने विचार किया कि अवश्य ही यह मृगी किसी पूर्व जन्म मे उसकी कोई प्रिय होनी चाहिए। ____ विचार करते-करते उसे स्मरण हुआ कि आज नगरी मे भगवान महावीर पधारे है। केवलज्ञानी भगवान से इस रहस्य को जान लेने के लिए वह लौट पडा। किन्तु मगी ने राजकुमार का साथ नही छोडा। वन
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