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________________ मम्मण सेठ का बैल "राजन् । आपकी ही प्रजा हूँ। मेग नाम है मम्मण सेवा में काम एक बैल तो है, दूसरे बैल की प्राप्ति के लिए ही यह परिश्रम कर न्हा या।' राजा को दया आ गई । मोचा~-गरीब है वेवाग। कहा "जाओ, मेरी गोशाला से एक बैल तुम ले जाओ । तनोमो वात लिए इतना कष्ट क्यो उठा रहे हो ? आविर मेरी सम्पनि में भी नोमान प्रजा का भाग है।" राजा की आज्ञा सुनकर गोशाला का अध्यन मम्मग ने गोनाना ले गया । सैकडो-हजारो बैल थे, एक मे एक बटर, कुछ आगामोरजक __ मे हाथियो जैसे, कुछ तेज और वल मे सिंह जंगे। किन्तु हमारे मम्मण सेठ को एक भी बैल पमन्द नहीं आग! राजा ने सुना तो वडा आश्चर्य हुआ उमे । पूछा-"नया नाममा कोई वैल पसन्द नही आया ? इतने सारे वैलो मे मे ?" “राजन् । मुझे तो मेरे बैल की जोड का वैन चाहिए। उमीन: का वैल आपकी गोशाला मे नही है।। मम्मण सेठ के इस उत्तर से राजगृही के प्रतापी गगा बेणि विस्मय और झुंझलाहट का पार न रहा । कुछ खीझ के साथ उसने कहा--- "ऐसा कैसा बैल है तुम्हारा ? लाकर मुझे दिखनाओ तो जग।" मम्मण सेठ ने कहा "राजन् । आदेश सिर-माथे। किन्तु मेरा बैल यहाँ नहीं आ माना। आप कृपा कर मेरे घर पधारे।" गजा ने सोचा कि अजीव झक्की आदमी से पाला पड गया। किन्तु वे विचारवान थे। धीरज रखकर मम्मण के साथ चल पडे । मम्मण सेठ की विशाल हवेली खण्डहर जैसी हो रही थी। कोई सारसंभाल नही । ऐसी, जैसे आदमी के नही, भूतो के रहने के लिए हो। राजा चुपचाप चलता रहा। मम्मण उसे तलघर मे ले गया। अँधेरा ही अँधेरा था। किन्तु वहाँ जाकर मम्मण ने किसी वस्तु के ऊपर से एक फटी गुदडी हटाई और पलक मारते ही तीव्र प्रकाश से राजा की आँखे चौधिया गई। धीरे-धीरे दृष्टि जमाकर उसने देखा-स्वर्ण का एक बैल है। हीरेपन्न मोती-माणिक्यो से जड़ा हुआ है। रत्न-राशि जगर-मगर कर रही है।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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