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आखिर सबको एक गति
२३५ प्रकार सारा सम्बन्ध तोडकर हवा के झोको में उलटते-गतटते की चल पड़े ?"
उस वृद्ध पत्ते ने धैर्य रखते हुए कहा- "सुकुमार कोरला 'तुन नादान हो । आज तुम सब मेरी इस स्थिति को देखकर उपहास कर रही हो, यह उचित नहीं है । एक दिन मैने भी तुम्हारी ही तरह शव को अँगडाइयाँ ली थी, सुकुमार बचपन देखा था। मैं भी किसी दिन तगार्ड के मादक सुनहले सपने सँजोता हुआ मधुर गग में सगीत-लहरी विचन्ता था। अपनी शाखा पर विहँसता और पुलकित होता या और तुम्हारी ही तरह प्रत्येक विनष्ट होने वाले बूढे पत्ते का मजाक उडाया करता था। पर नाज स्वय भी इस स्थिति मे पहुँचकर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे विदा ले रहा है। भूलो मत | हमारी ही तरह कत तुम्हारी भी वारी आयेगी। इस वृक्ष पर हँसने वाली सभी नवोदित कोपलो की कालान्तर मे यही गति होती है। सवको एक दिन विदा लेनी ही पडती है।"
इतनी बात कहकर वह अवस्था प्राप्त पत्ता अन्य जीर्ण-शीर्ण पत्तो के वीच आकर लुप्त हो गया।
ऐसा कोई भी तो नहीं जिसे एक न एक दिन जीवन-सरिता के कगार से फिसल कर अतल जल मे समाधिस्थ न हो जाना पडे ।
--अनुयोगद्वार