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________________ २३३ आग्रह छोडो सेठ के आदेश पर नौकरो ने उसे उठाया । साधारण परिचर्या के बाद जब उसे होश आया तो वह फूट-फूटकर रोने लगा - "कहाँ यह गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ, नौकर-चाकर, सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ और कहाँ मै सडको की धूल फॉकने वाला गरीब । सारा दिन फेरी करने के पश्चात भी जिसे भर-पेट भोजन और तन ढँकने को गज भर कपडा भी नही मिल पाता ।" I सेठ ने पुन पुरानी स्मृतियो को ताजा करते हुए कहा - "भाई उस समय तो तुम हम लोगो को गालियाँ देते और कोसते थे । हमारी अस्थिरता का उपहास करते थे, लेकिन तुम्हारी स्थिरता तुम्हे दरिद्रता से उबार न सकी । अव रोने-धोने और पछताने से क्या लाभ ?" फेरी वाले ने दोनो हाथ जोडकर विनीत स्वरो मे सेठ से क्षमा याचना की । सेठ ने पुराना साथी जानकर उसे बहुत सारी सम्पत्ति देकर विदा किया । 1 मिथ्या आग्रह छोडकर " सच्चाई को स्वीकार करना" यदि अन्य व्यापारियो की तरह उसे भी उचित लगता तो इस तरह दरिद्रता की चक्की मे उसे न पिसना पडता । औरो की तरह वह भी ऐश्वर्यशाली बन जाता और सुख पाता । - राजप्रश्नीय
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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