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सबसे सीधा रास्ता
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"वे दावद्रव वृक्ष कृष्ण वर्ण वाले, निकुरव (गुच्छा) रूप है । पत्तो वाले, फूलो वाले, फतो वाले, अपनी हरियाली के कारण मनोहर और श्री से अत्यन्त शोभित है ।
"अब जब द्वीप सम्बन्धी ईपत् पुरोवात जर्थात् कुछ-कुछ स्निग्ध अथवा पूर्व दिशा सम्वन्धी वायु, पथ्यवात अर्थात् सामान्यत वनस्पति के लिए हितकारक या पछाही वायु, मद ( धीमी-धीमी) वायु और महावातप्रचण्ड वायु चलती है, तब बहुत से दावद्रव वृक्ष जीर्ण जैसे हो जाते है. झोड हो जाते है, अर्थात् सडे पत्तो वाले हो जाते है । अतएव वे खिरे हुहु पीले पत्तो, पुष्पो और फलो वाले हो जाते है और सूत्रे पेडों की तरह मुरझाते हुए खड़े रहते है |
" इसी प्रकार हे गौतम । जो साधु या साध्वी दीक्षित होकर बहुत से साधुओ, वहुत-सी साध्वियो, बहुत-से श्रावको और बहुत-सी श्राविकाओ के प्रतिकूल वचनो को सम्यक् प्रकार से सहन करता है, यावत् विशेष रूप से सहन करता है, किन्तु बहुत से अन्य तीर्थिको के तथा गृहस्थों के दुर्वचन को सम्यक् प्रकार से सहन नही करता है, यावत् विशेष रूप से सहन नही करता है, ऐसे पुरुष को मैंने देश विरोधक कहा है ।
“जब समुद्र सम्बन्धी ईपत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, मदवात और महावात वहती है, तब बहुत से दावद्रव वृक्ष जीर्ण से हो जाते है, झोड हो जाते है, बावत् मुरझाते - मुरझाते खडे रहते हैं । किन्तु कोई-कोई वृक्ष पत्रित, पुष्पित रहते हुए ही अत्यन्त शोभायमान होते रहते है ।
" इसी प्रकार जो साधु अथवा साध्वी दीक्षित होकर बहुत से अन्य तीर्थिको के और बहुत-से गृहस्थो के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है और बहुत-से साधुओ, बहुत-सी साध्वियो, बहुत-से श्रावको तथा बहुत-सी श्राविकाओ के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से महन नही करता, उस पुरुष को मैंने देशाराधक कहा है ।
"जब द्वीप सम्वन्धी और समुद्र सम्बन्धी एक भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् महावात नही वहती, तब सब दावद्रव वृक्ष जीर्ण सरीने हो जाते है, यावत् मुरझाये मुरझाये रहते है ।
"इमी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो । जो साधु या साध्वी यावत् प्रव्रजित होकर बहुत से साधुओ, बहुत-सी साध्वियो, बहुत-से श्रावको, बहुत