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________________ ५५ सबसे सीधा रास्ता - भगवान महावीर अनुक्रम से विचरण करते-करते जिम दिशा मे भी चले जाते थे, उम दिशा और उम स्थान के समस्त प्राणी परम आनन्दित हो उठते थे। भगवान के दर्शन का लाभ बड़े भाग्य मे ही प्राप्त होता है । अत एक बार जब भगवान महावीर एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरण करते-करते गजगृही नगरी मे पधारे, तब वहाँ के निवामियो के हर्ष का सोर्ट पार ही न रहा। गगृही नगरी में पधारकर भगवान महावीर गुणशील नामक चैत्य मे बिगजे। उस नगरी का गजा येणिक वडा धर्मात्मा था। भगवान के आगमन के मुसवाद को जानकर तो वह अत्यन्त आनन्दित हुआ। वह नमन्त नगर निवामियो के साथ भगवान के दर्शन तथा धर्मोपदेश का लाभ लेने गया । उपयुक्त रीति से भगवान की बन्दना करके नया उपदेश सुनकर मनी नगर न लौट गये। दमके पश्चात् गौतम म्वामी के मन मे एक प्रश्न उठा। उसका नमाधान उन्होंने भगवान से पूछा भगवन् । जीव किस प्रकार आगवक अथवा विगवा होते है?" भगवान ने विचार किया कि किसी अच्छे उदाहरण महित ही उम प्रदन ता उत्तर देना चाहिए । अस्तु उन्होने कहा तम! तुमने समुद्र के किनारे लगने वाले दाबद्रव नामक वृक्ष तो देने हैन । हा नगवन् ! दाबद्रव वृक्ष मेने देने है।"
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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