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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
तभी आप रोग मुक्त हो सकेगे।" राजा ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। वैद्यराज ने ओपधि द्वाग थोड़े दिनो मे राजा को स्वस्थ कर दिया।
वैद्यगज ने विदा माँगी । गजकोप मे बहुत-सा द्रव्य देकर वैद्यराज को प्रसन्नतापूर्वक राजा ने विदा किया। जाते समय वैद्यजी ने परिवार एव मन्त्रीगणो को विशेप रूप से सावधान करते हुए कहा
"आपको इस बात की पूर्ण मतर्कता रखनी होगी कि गजा आम खाना तो दूर उसका म्पर्श भी न करे, अन्यथा रोग पुन उठ खडा होगा ओर तब इसकी चिकित्सा बिल्कुल ही असभव एव दु साध्य हो जाएगी।"
वैद्यगज के कथनानुसार गजा ने आम खाना बिल्कुल छोड दिया। आम खाने की बात तो दूर रही, राजधानी मे आम का व्यापार तक निपिद्ध कर दिया गया। राज्यभर के सभी आम्रतरु कटवा दिये गये-'न रहेगा बाँस, न बजेगी वासुरी'।
एक बार राजा अपने मन्त्री के साथ अश्वारूढ होकर गज्य-सीमा का अतिक्रमण करता हुआ बहुत दूर निकल गया । वहाँ एक विशाल वन या। धूप और श्रम के कारण राजा और मन्त्री क्लान्त एव श्रान्त हो गये ये । अत विश्राम के लिए उन्होने एक आम वृक्ष की छाया में अपने घोडे गेक दिए । मन्त्री ने सलाह दी--"महाराज | कुछ आगे चलिए, आम के पेड की छाया मे बैठना ठीक नहीं है।"
गजा हॅम पड़ा-“मन्त्री जी । यह मब तो वैद्यो-हकीमो की चाले होती है । अपना मतलब जिस प्रकार सीधा हो वही उपाय वैद्य या हकीम अपनाते है । भला आम की छाया में विश्राम करने से कभी गेग उत्पन्न हो मरना हफिर हमे यहा अधिक समय तक तो टहरना नही है। कुछ सा विश्राम लेने के बाद आगे बढ जाना है। हम आम तो ग्वा नहीं रहे है।
आग्विर मन्त्री को ही राजा की बात माननी पड़ी।
दोनो उस वृक्ष के नीचे विबाम करने लगे। शीतल वायु चल रही थी। आबो मे नीद तैग्ने लगी। इतने में वायु का एक झोमा खाकर एक अति सुन्दर पा हआ आम गजा के पास ही टपक पटा । गजा ने पीले रग समोरन ने गमरता हुआ आम देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। नाम को हाथ में उठाकर वह उसकी मुगन्धि लेने लगा। उसके मधुर रम