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________________ ५४ अमृत या विष ? किसी भी वस्तु का अति सेवन अहितकर होता है । अति सेवन से अमृत भी विष वन जाता है । एक राजा आम खाने का बडा शौकीन था । नित्य-प्रति चुने-चुने, भाँति-भाँति के आमो का बडे चाव से आस्वादन लेता था और खूब लेता था । आम के अत्यधिक सेवन से राजा 'विशुचिका' नामक रोग से बुरी तरह आक्रान्त हो गया । अनेक वैद्य उपचार में लगे किन्तु 'ज्यो- ज्यो दवा की, रोग वढता गया ।' राजा असह्य पीडा की अग्नि मे तिल-तिल कर जलने लगा । एक बार राजा ने एक अनुभवी वैद्य को चिकित्सा के लिए बुलवाया वैद्य ने राजा के रोग की परीक्षा करने के उपरान्त वताया -- “राजन् ' यह रोग अत्यधिक आम खाने से उत्पन्न हुआ है । साधारण चिकित्सा से यह ठीक होने वाला नही । उचित औषधि से मै इसे निर्मूल तो कर सकता हूँ किन्तु औषधि का पथ्य कठिन है । यदि उसका पालन कर सको तो इलाज किया जाये ।" रोग की भयंकर पीड़ा से कराहते हुए राजा ने कहा--"वैद्यराज । आप मुझे रोगमुक्त कर दीजिए, जैसा कहेगे वैसा ही पथ्य का निर्वाह करूँगा ।" वैद्यराज ने कहा--" आपको आम अत्यधिक प्रिय है । रुग्णावस्था मे भी आप उसके मधुर स्वादो के लोभ का सवरण नही कर पा रहे है । लेकिन अव आपको यह दृढ निश्चय करना होगा कि यावज्जीवन आम नही खाऊँगा 1 २२३
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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