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२१६ साधु और चन्द्रमा उनसे भी जल्दी तैयार होकर भगवान के दर्शन के लिए जाने को आतुर थी। किसी महिला को कुछ विलम्ब होता भी तो दुनरी उसने तहतो
__ "अरे महारानी जी । अब छोडो भी ये साज-निगा। शृगार तो जन्मभर होते रहेगे, किन्तु भगवान के दर्शन बार-बार नहीं होते।"
"चल हट । कर कौन रहा है शृगार में तो वम रे तयार हूं बारी काम बाद मे होता रहेगा।"-दूसरी कहती और घर का अधूग काम छोड-छाडकर झट से निकल पडती । इस प्रकार उस दिन गनगृही नगरी में जिधर देखो उधर ही आनन्द, उत्साह और आतुरता का एक समुद्र-ना ही उफन पडा था। ___और वालक ? वालको के स्वभाव को कौन नहीं जानता मिली भी उत्सव मे जाना हो बालक सबसे पहले तैयार होते है और आगे-आगे चलते है। फिर आज तो भगवान पधारे थे, उनके दर्शन के लिए जाना था. अत आज उनकी उमंग का तो कोई पार ही नहीं था। अपने माता-पिता या बड़े भाई-बहिनो को वे खीच-खीचकर लिए जा रहे थे ।
“जल्दी करो न, माता ! आपने कितनी देर लगा दी, पिताजी । मब लोग तो जा रहे है और आप अभी तैयार ही नहीं हुए । जल्दी करो, चलो न अव • • ."
उस दिन राजगृही नगरी मे ऐसा ही वातावरण था। कारण था भगवान महावीर का उस नगरी मे पदार्पण । अनुक्रम से एक ग्राम से दुसरे ग्राम जाते हुए भगवान महावीर उस दिन राजगृही नगरी में पहुँचकर नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा मे गुणशील नामक उद्यान मे, जिसमे कि एक पवित्र चैत्य था, ठहरे थे। उन्ही के दर्शनो तथा उपदेश का पुण्य-लाभ करने के लिए सारी नगरी उत्साहित हो रही थी।
एक ओर उस नगरी के निवासियो का यह हाल था और दूसरी ओर उस नगरी का राजा-श्रेणिक अपने सारे राज-परिवार को तैयार करके अपनी चतुरगिनी सेना के साथ भगवान के दर्शन के लिए आतुर हो रहा था।
अन्त मे परिपद् निकली और भगवान की सेवा मे उपस्थित हुई। भगवान ने धर्म का उपदेश देकर भव्य प्राणियो को कृतार्य किया ।